क्या है पूरा मामला?
वर्ष 2016 में यूपी बोर्ड परीक्षा पास करने वाले मेधावी छात्रों को समाजवादी पार्टी सरकार ने मुफ्त लैपटॉप बांटने का ऐलान किया था। बरेली के राजकीय इंटर कॉलेज को नोडल सेंटर बनाया गया। दिसंबर तक वितरण हुआ, लेकिन जनवरी 2017 में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होते ही शेष बचे 73 लैपटॉप एक कमरे में सील कर दिए गए। इसके बाद सरकार बदल गई, लेकिन कमरा न खुला और न ही किसी अधिकारी ने दोबारा पहल की। दो पुलिसकर्मी सुरक्षा में तैनात कर दिए गए, जिनकी ड्यूटी को रिकॉर्ड में ‘लैपटॉप ड्यूटी’ का नाम दिया गया।
सवाल: क्या अब ये लैपटॉप काम के लायक बचे हैं?
प्रो. एसएस बेदी, विभागाध्यक्ष, कंप्यूटर साइंस, एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के अनुसार, इतने सालों तक बंद पड़े रहने के कारण बैटरियां खराब हो चुकी होंगी। “भले ही हार्डवेयर चालू हो, लेकिन इनमें विंडोज 7 है, जिसे आज के सॉफ्टवेयर और अपडेट्स के साथ चलाना मुश्किल है।” वेतन का खर्च: आंकड़ों में लापरवाही एक सिपाही का मासिक वेतन: ₹28,000 (अनुमानित) दो सिपाहियों का वार्षिक वेतन: ₹6.72 लाख आठ साल में खर्च: ₹53.76 लाख लैपटॉप की अनुमानित कीमत: ₹20,000 प्रति यूनिट
कुल लैपटॉप लागत: ₹14.60 लाख सरकार ने 14.60 लाख के लैपटॉप की सुरक्षा पर 53 लाख रुपये से ज्यादा खर्च कर दिए—लेकिन आज तक एक भी लैपटॉप छात्रों को नहीं मिला।
प्रशासन की चुप्पी
वर्तमान जिला विद्यालय निरीक्षक अजीत कुमार का कहना है कि वह शासन से निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। जब पूछा गया कि कितनी बार शासन को पत्र भेजा गया, तो उन्होंने स्पष्ट जवाब नहीं दिया। पूर्व में तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक ने 2017 में शासन को पत्र भेजा था, लेकिन उसके बाद संवाद पूरी तरह बंद हो गया।
सिपाही भी स्कूल में बना चुके हैं ‘ठिकाना’
कॉलेज के प्रधानाचार्य ओपी राय ने बताया कि ड्यूटी पर आने वाले सिपाही अब एक अन्य खाली कमरे का उपयोग करने लगे हैं। यानी सरकारी स्कूल का कमरा अब पुलिस ड्यूटी रूम में तब्दील हो चुका है।
सबक: न तकनीक का लाभ मिला, न योजनाओं का प्रबंधन
यह मामला न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि तकनीकी संसाधनों का रखरखाव और वितरण आज भी कई सरकारी विभागों के लिए प्राथमिकता नहीं है।