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बांसवाड़ा

राजस्थान का एक गांव… जहां गंदा पानी पीने को मजबूर लोग, महिलाओं के लिए पहाड़ी से ‘जल’ लाना एक ‘मिशन’; पैर फिसला तो ‘जीवन’ खत्म

Water Crisis: पत्रिका टीम पथरीले रास्तों से होते हुए महिलाओं के पास पहुंची तो गांव में पानी की किल्लत की सच्चाई सामने आई।

बांसवाड़ाApr 14, 2025 / 10:07 am

Alfiya Khan

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आशीष बाजपेयी
बांसवाड़ा। चिलचिलाती धूप, तापमान 42 डिग्री से., सूरज सिर पर, गर्म हवाओं के थपेड़े ऐसे मानों आग की लपटें झुलसा रहीं हों। ऐसे हालात जहां एक मिनट भी खड़ा होना मुश्किल, वहां पहाड़ी की तलहटी में दोपहर ठीक एक बजे 8-10 महिलाएं पानी भरती नजर आई।
पत्रिका टीम बांसवाड़ा शहर से 45 किलोमीटर दूर गड़ा पंचायत के सज्जनगढ़ गांव पहुंची। टीम पथरीले रास्तों से होते हुए महिलाओं के पास पहुंची तो गांव में पानी की किल्लत की सच्चाई सामने आई। गड्‌ढे से पानी भरती रेशमा, पुष्पा और हुकी कहती है कि ‘खूब दिक्कत थके तो पाणी मलै। डोंगरा थके उतरी ने पाणा वारा रास्ता थकी जईने हरते पाणी लावा ई जे वीते ई अमनेस खबर है। इटला खराब हाल है इणी जगा न कि जरा भी ध्यान सूकि ग्यू त चोट लागी जाए।’

हैंडपंप में बारिश में आता है पानी

अन्य गड्ढे से नहाने के लिए मटमैला पानी भरती नीमा और नूरी बताती है कि गांव में कोई भी नल दुरुस्त नहीं है। मजबूरी है ऐसे पानी से नहाना और पीना। महिला कर्मा बताती है कि घर में हैंडपंप लगा है, लेकिन सिर्फ बारिश में ही पानी आता है।

5 हजार देकर एनिकट के पेटे में खुदवाया गड्ढा, तब मिला मटमैला पानी

ग्रामीण नारजी बताते हैं कि 300 की आबादी वाले इस गांव के हैंडपंप सूख गए तो लोगों ने मिलकर चूलिया टिम एनिकट के पेटे में पांच हजार रुपए खर्च कर जेसीबी से गड्ढा खुदवाया, तब ये पानी नसीब हुआ। कहने को तो गांव में 7-8 हैंडपंप हैं, लेकिन फरवरी खत्म होते ही हैंडपंप सूखने लगते हैं। मार्च-अप्रेल आते आते तो एक दो हैंडपंप से पानी सके तो गांव वालों की किस्मत। भीषण गर्मी में तो उसमें भी पानी खत्म हो जाता है।

ये समाधान

■ बड़े-बड़े तालाब बनाकर बारिश का पानी स्टोर किया जा सकता है।
■ चेक डैम बनाया जा सकता है।
■ रेन वाटर हार्वेस्टिंग बनवाकर ।
■ हैंडपंप दुरुस्त करवा कर।

पैर फिसले तो नीचे गिरना तय

सुकिता और इतरी बताती हैं कि दिन में हमें कम से कम 7-8 बार पानी लाना पड़ता है। दोपहर में मवेशियों के लिए पानी लाना पड़ता है। हमें सिर्फ रास्तों का जोखिम नहीं है। पत्थरों पर खड़े होकर 20-25 फीट नीचे से पानी निकलना मौत से लड़ने से कम नहीं, क्योंकि जरा सा पैर फिसले तो पत्थरों से टकराते हुए 20-25 फीट नीचे गिरना तय है।

जल जीवन मिशन के तहत काम चल रहा

पंचायत को कहा था कि जलदाय विभाग को लिखें और टैंकर से पानी उपलब्ध कराएं। क्षेत्र में जल जीवन मिशन के तहत काम चल रहा है। वहां पानी टंकियां निचले इलाकों में हैं। एक बार दिखवा कर प्रयास करते हैं।
बलबीर रावत, प्रधान, पंचायत समिति, बांसवाड़ा

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