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मां की स्मृति से उपजा मंदिर का विचार
मंगल प्रसाद ने बताया, जब मकान बन रहा था, तो मां पार्वति पास बैठकर काम देखती थीं। सोचा था कि घर का उद्घाटन मां के हाथों होगा, पर हृदयघात से निधन हो गया। उनकी समाधि घर के पीछे खुले आसमान के नीचे बनाई गई, पर यह देखकर मन में अपूर्णता का अहसास हुआ। उसी क्षण माता-पिता का मंदिर बनाने का संकल्प लिया। खुशी है कि सपना पूरा हो गया। मंदिर में पिता रामरतन रैकवार,बड़ी मां शुभन्ति और मां पार्वति की प्रतिमा स्थापित की हैं।
संघर्ष से मिली प्रेरणा
मंगल प्रसाद के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। पूर्व परिवहन मंत्री लिखीराम कावरे की मदद से वन विभाग में दैनिक वेतनभोगी की नौकरी मिली। पर यह नौकरी पर्याप्त नहीं थी, उन्होंने पुश्तैनी जमीन बेच रियल एस्टेट का व्यवसाय शुरू किया। दोस्तों, रिश्तेदारों और स्थानीय लोगों के सहयोग से आज इस मुकाम तक पहुंचे।