पुलिस की वर्दी पहनते ही छलके खुशी के आंसू
2008 में जब वे एक स्कूल में ‘विद्यार्थी मित्र’ के रूप में सेवा दे रहे थे, तभी पुलिस भर्ती का मौका मिला। जी-जान लगाकर परीक्षा दी और फिजिकल से इंटरव्यू तक सभी चरण पार किए। चयन के बाद, डालूराम की आंखों से अपने संघर्ष और मेहनत की जीत के आंसू छलक पड़े। आज वे हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर, बीएड कर चुके हैं और भूगोल में भी मास्टर्स की पढ़ाई जारी है।
700 से ज़्यादा युवा, एक ही गुरु
डालूरामडालूराम केवल खुद ही नहीं बढ़े, उन्होंने अपने साथ सैकड़ों को ऊपर उठाया। बीते ढाई दशकों में वे 700 से अधिक युवाओं को निःशुल्क शिक्षा और मार्गदर्शन दे चुके हैं। उनके सिखाए छात्रों में एक आईएएस, एक आईपीएस, दर्जनों डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और सैकड़ों सिपाही एवं फौजी शामिल हैं। उनके लिए यह केवल एक सेवा नहीं, बल्कि आत्मसंतोष और समाज के प्रति जिम्मेदारी का हिस्सा है।
डालूराम का मूल मंत्र- ‘जहां थको, वहीं से फिर दौड़ो’
वे कहते हैं, “अगर चांद की तरह चमकना है, तो पहले सूरज की तरह तपना होगा।” संघर्ष को उन्होंने कभी रुकावट नहीं बनने दिया, बल्कि सीढ़ी बना लिया। उनका मानना है कि हारने वाला नहीं, फिर से कोशिश करने वाला जीतता है।
आज के युवाओं के लिए एक आदर्श
राजस्थान पुलिस का 76वां स्थापना दिवस जहां पुलिस की वीरता को समर्पित है, वहीं डालूराम सालवी जैसे कर्मयोगियों की कहानियां यह भी साबित करती हैं कि वर्दी में सेवा का मतलब केवल अपराधियों से लड़ना नहीं, बल्कि समाज के भविष्य को संवारना भी है।