CG News: छत्तीसगढ़ के रायपुर देश में आज भी असमानता बनी हुई है। इसी पर कटाक्ष करता हुआ नाटक ‘रस्सा’ की प्रस्तुति रंगमंदिर में रविवार शाम दी गई। भातखंडे ललित कला शिक्षा समिति के तत्वावधान में रूपक नाटक संस्था ने ‘रस्सा’ नाटक का मंचन किया। पर्दा उठता है और दर्शकों एक ऐसे माहौल में दाखिल हो जाते हैं जहां रथ यात्रा निकाली जानी है लेकिन सब कुछ सुनसान लग रहा है। महिलाएं बतियाती नजर आती हैं कि इतने बड़े त्योहार में ऐसा क्या हो गया है कि सन्नाटा पसरा हुआ है। पता चलता है कि रथ को खींचने वाला रस्सा उठ नहीं रहा है। सभी तरह के लोग आते हैं और रस्सा उठाने का प्रयास करते हैं, लेकिन रस्सा तो सीता स्वयंवर के पिनाक धनुष की तरह टस से मस नहीं हुआ। कुछ लोगों को तय रस्सा अंगद के पैर जैसा मजबूत लगने लगा।
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जब सभी लोग थक गए तो निचले तबके के कुछ लोग वहां पहुंचे और कहने लगे हम उठाएंगे रस्सा। बाबा ने हमें आदेश दिया है। वहां मौजूद पुरोहित उन्हें फटकारते हुए कहता है कि तुहारी हिमत कैसे हुई कि रस्सा को हाथ लगा सको। सभी ने समवेत स्वर में कहा कि हमें बाबा ने कहा है, और हमें इसे उठाने से कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने बड़ी आसानी से रस्सा उठा लिया। रिदम की आवाज में रथ आगे बढ़ता है और सभी रथ के नतमस्तक हो जाते हैं। हमने नाटक में महाकाल को काल की यात्रा से जोड़ते हुए दिखाया है। इसमें आधुनिक और पुरातन विचारधारा को प्रस्तुत किया है। इसे पुरोहित और औघट संन्यासी के जरिए दोनों विचारधारा सामने आती है। -कुंजबिहारी शर्मा, निर्देशक