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रायपुर

Fraud game: सुविधा के नाम पर शून्य, पैकेज के लालच में फर्जी क्लेम कर रहे निजी अस्पताल

राजधानी रायपुर (the capital Raipur ) समेत कस्बाई इलाकों के कुछ निजी अस्पताल (Some private hospitals) पैकेज के लालच में फर्जी क्लेम कर ( making fake claims ) रहे हैं। मोटे पैकेज को देखते हुए अस्पताल में सुविधा नहीं होने के बाद भी ऐसे क्लेम किए जा रहे हैं। हालांकि स्टेट नोडल एजेंसी ( State Nodal Agency ) ने ऐसे कुछ अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई की है, लेकिन ये नाकाफी हैं।

रायपुरApr 13, 2025 / 06:06 pm

Rabindra Rai

Fraud game: सुविधा के नाम पर शून्य, पैकेज के लालच में फर्जी क्लेम कर रहे निजी अस्पताल

Fraud game: सुविधा के नाम पर शून्य, पैकेज के लालच में फर्जी क्लेम कर रहे निजी अस्पताल

जिंदगी के साथ खिलवाड़ ही नहीं योजना का दुरुपयोग भी

अस्पताल में सुविधा न होते हुए भी मरीज का इलाज करना जिंदगी के साथ खिलवाड़ ही नहीं योजना का दुरुपयोग भी है। आयुष्मान भारत यानी शहीद वीर नारायण सिंह स्वास्थ्य योजना के तहत कुछ निजी अस्पतालों की ऐसी मनमानी सामने आ रही है, जिसकी कल्पना करना मुश्किल है। उदाहरण के लिए अस्पताल में सुविधा न होते हुए भी बड़े पैकेज ब्लॉक करना, गैरजरूरी तरीके से अधिक राशि वाले पैकेज क्लेम करना, ओपीडी के मरीज को भर्ती दिखाकर पैकेज ब्लॉक कर क्लेम करना शामिल हैं। गौर करने वाली बात है कि 2023-24 में योजना के तहत 2153 करोड़ रुपए का इलाज हुआ। अब तक का ये सबसे बड़ा आंकड़ा है।

दो डॉक्टरों के भरोसे चल रहे अस्पताल भी कर रहे क्लेम

पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि जो अस्पताल एक या दो डॉक्टरों के भरोसे चल रहे हैं। वहां भी ऐसे-ऐसे इलाज का क्लेम किया जा रहा है, जैसे कोई मल्टी या सुपर स्पेशलिटी अस्पताल हो। कुछ अस्पतालों में सीजेरियन डिलीवरी हो या नार्मल, बच्चों को एनआईसीयू में भर्ती दिखाकर क्लेम हो रहा है। जबकि एनआईसीयू के लिए पीडियाट्रिशियन, वार्मर, वेंटिलेटर समेत जरूरी सुविधाओं की जरूरत होती है।

हेड इंजुरी के मरीज का इलाज भी बालोद जैसे छोटे शहर में

बाइक से असंतुलित होकर गिरने से एक व्यक्ति के सिर में गंभीर चोट लगी। बालोद के एक छोटे अस्पताल में पीडि़त का इलाज किया गया। 5 लाख का पैकेज भी खत्म हो गया। फिर एसएनए से टॉपअप भी करवाना पड़ा। इलाज के दौरान मरीज की मौत हो गई। हेड इंजुरी के बाद मरीज का इलाज न्यूरो सर्जन करेगा या इंटेविस्ट यानी क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ। अस्पताल में दोनों ही विशेषज्ञ नहीं थे, फिर भी इलाज किया गया। परिजनों को अस्पताल प्रबंधन की ओर से यहां तक कह दिया गया कि जो इलाज यहां हो रहा है, वो रायपुर में होगा। पैसे के लालच में विशेषज्ञ डॉक्टर न होते हुए भी मरीज का इलाज किया गया।

कमरे में पर्दे, पार्टीशन भी नहीं, ये है आईसीयू

एक कस्बाई अस्पताल में आईसीयू के नाम पर कमरे में केवल पर्दे लगे हैं। पार्टीशन भी नहीं है और न एसी है। वहां केवल पंखे चल रहे हैं। न मॉनीटर था और न जरूरी सुविधाएं। यहां तक एक भी वेंटिलेटर नहीं है, लेकिन अस्पताल हर साल हजारों केस आईसीयू का क्लेम करता है। क्लेम स्वीकृत भी हो जाता है। यही नहीं अस्पताल का मालिक जनरल फिजिशियन है, जो अपने आपको हार्ट रोग व डायबिटीज रोग विशेषज्ञ बताते हैं। मरीजों को कोई बिल भी नहीं दिया जाता। यानी पूरा काम कच्चा में हो रहा है। सरकार को टैक्स भी नहीं दिया जा रहा।

अधिकारी मूंदे रहते हैं आंख इसलिए पंजीयन भी हो रहा

नर्सिंग होम एक्ट व आयुष्मान भारत योजना के तहत पंजीयन के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अस्पतालों का निरीक्षण करते हैं। संतुष्ट होने पर ही अस्पताल का पंजीयन किया जाता है और योजना के तहत मान्यता दी जाती है। जब अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टर व सुविधा ही नहीं है तो एसएनए ऐसे अस्पतालों पर लगाम क्यों नहीं लगती? क्यों शिकायतों का इंतजार किया जाता है? मतलब साफ है कि निरीक्षण के दौरान अधिकारी आंखें मूंदे रहते हैं और आरोप है कि लेन-देन कर अस्पतालों को मान्यता दी जाती है।

निजी अस्पतालों में ऐसे की जा रही मनमानी

  • अनावश्यक रूप से अधिक राशि वाले पैकेज ब्लॉक करना।
  • ओपीडी के मरीजों को भर्ती दिखाकर फर्जी क्लेम करना।
  • अस्पताल में बिना मरीज भर्ती हुए पैकेज ब्लॉक करना।
  • बिना विशेषज्ञ व सुविधा के ही संबंधित पैकेज ब्लॉक।
  • अनावश्यक रूप से आईसीयू के पैकेज ब्लॉक करना।
  • पैकेज के अलावा मरीजों से अतिरिक्त नकद राशि लेना।

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