साथ ही अपने फैसले में कहा कि बिल्डर्स द्वारा प्रकरण को जानबूझकर उलझाया गया। उनके द्वारा पेश की गई दलील निराधार है। फ्लैट विक्रय करने के बाद भी भौतिक अधिपत्य प्रदान न कर सेवा में कमी की गई। जबकि जिला फोरम ने पहले ही आदेश जारी फ्लैट देने कहा था। इसके बाद भी खरीदार को फ्लैट नहीं दिया गया। इसके कारण राष्ट्रीय आयोग तक दौड़ लगानी पड़ा।
आयोग ने कहा- मामला सिविल का
जिला
फोरम के फैसला के खिलाफ बिल्डर्स ने राज्य आयोग में अपील की। जहां दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद प्रकरण को सिविल बताते हुए अपील को खारिज कर दिया गया था। आयोग में राहत नहीं मिलने पर दलजीत ने दस्तावेजी साक्ष्य के साथ राष्ट्रीय आयोग दिल्ली में अपील की। जहां पूरे घटनाक्रम का ब्योरा दिया। आयोग ने पेश कि गए परिवाद को स्वीकार करते हुए दोबारा आयोग को सुनवाई करने का आदेश दिया।
गुमराह करने की कोशिश
राज्य आयोग में सुनवाई के दौरान शिल्प बिल्डर्स के संचालकों (पार्टनरों) ने गुमराह करने की कोशिश की। साथ ही उक्त बहुमंजिला इमारत का निर्माण ही नहीं करने का हवाला दिया। जबकि महिला द्वारा खरीदी की रसीद, साज-सज्जा के एवज में भुगतान किए गए रकम की रसीदें पेश की। साथ ही किसी दूसरे को आधिपत्य देने का साक्ष्य भी दिया।
वहीं दूसरे बिल्डर्स की ओर से सुनवाई के दौरान कोई उपस्थित ही नहीं हुआ। दोनों पक्षों के दस्तावेजों की जांच और परिवादी द्वारा पेश किए गए साक्ष्य के आधार पर बिल्डर्स को फ्लैट देने का आदेश पारित किया।
यह है प्रकरण
अधिवक्ता राजेश भावनानी ने बताया कि बस्तर बा़डा़ निवासी दलजीत कौर के पति स्वर्गीय गुरविन्दर सिंह भसीन द्वारा शंकर नगर स्थित शिल्प इनक्लेव कन्डोमिनियम नामक बहुमंजिला इमारत 5 अक्टूबर 2006 में खरीदा। इसके एवज में 12 लाख 96000 रुपए भुगतान किया। नियमानुसार बिल्डर्स ने 30 जून 2007 तक फ्लैट का पजेशन दिया जाना था। लेकिन, इस फ्लैट को बिल्डर्स ने किसी दूसरे को 12 लाख 51000 रुपए में बेच दिया। इसके बाद भी रकम और फ्लैट नहीं लौटाया। इसकी जानकारी मिलने पर दलजीत ने जिला फोरम में परिवाद पेश किया। जहां उसके पक्ष में फैसला दिया गया था।