विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, अस्वस्थ कार्यबल किसी देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को प्रतिवर्ष 1-2 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक व्यक्तिगत खर्च, कामकाजी दिनों की हानि और समयपूर्व मृत्यु दर जैसे कारक प्रत्यक्ष रूप से अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। यदि बीमारियों को जन्म लेने से पहले ही रोक दिया जाए, तो यह केवल जनजीवन को ही नहीं, बल्कि उत्पादकता, श्रमबल और सरकारी व्यय को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। भारत में जहां 60 प्रतिशत से अधिक बीमारियां जीवनशैली और संक्रमणजन्य हैं, वहां प्रिवेंटिव हेल्थ केयर को प्राथमिकता देना एक निवेश की तरह है, जो भविष्य में उपचार की भारी लागत से रक्षा करता है।
भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में यह स्पष्ट संकेत दिया गया है कि देश की स्वास्थ्य प्रणाली को केवल “बीमारी की देखभाल” से “स्वास्थ्य संवर्धन” की दिशा में ले जाया जाएगा। इस नीति ने निवारक स्वास्थ्य सेवाओं को पांच प्रमुख स्तंभों में शामिल किया। नीति में यह लक्ष्य रखा गया था कि वर्ष 2025 तक जीवन प्रत्याशा को 70 वर्ष तक ले जाया जाएगा और स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाया जाएगा। यह परिवर्तन न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार का संकेत है, बल्कि यह एक सुदृढ़ श्रमबल के निर्माण की दिशा में भी एक बड़ा आर्थिक कदम है। सरकार इसे करने के लिए प्रतिबद्ध है। स्वस्थ नागरिक कार्यक्षमता, उत्पादकता और नवाचार की आधारशिला होते हैं। यदि सरकार निवारक उपायों में निवेश बढ़ाती है, तो यह दीर्घकालिक रूप से स्वास्थ्य बीमा दावों, अस्पताल में भर्ती दरों और दवाओं की खपत में कमी लाकर आर्थिक व्यय को घटा सकता है।
आयुष्मान भारत योजना को सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में ‘गेम चेंजर’ के रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें दो भाग शामिल हैं- हैल्थ एंड वेलनेस सेंटर और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को न केवल प्राथमिक उपचार का केंद्र बनाया जा रहा है, बल्कि इन केंद्रों में नियमित जांच, योग, टीकाकरण, पोषण परामर्श और स्वास्थ्य शिक्षा को अनिवार्य किया गया है। इस प्रयास का प्रभाव दीर्घकालिक आर्थिक सुधारों में दिखेगा, क्योंकि जब बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में पहचान और नियंत्रण संभव हो जाए, तो उन्नत चिकित्सा की आवश्यकता और लागत, दोनों कम हो जाती हैं। पीएम-जय भले ही बीमा आधारित उपचार योजना है, परंतु इसके अंतर्गत निवारक जागरूकता अभियान चलाकर नागरिकों को रोगों के शुरुआती लक्षणों की पहचान, स्वच्छता और पोषण की जानकारी दी जाती है, जिससे उपचारात्मक खर्च कम होता है।
स्वच्छ भारत अभियान ने देश के अधिकांश भागों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाई, जो जलजनित बीमारियों और शिशु मृत्यु दर को कम करने में एक निर्णायक कदम रहा। जलजनित रोगों पर सरकार को प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते थे, जिनमें से अधिकांश अब नियंत्रित हुए हैं। इसका आर्थिक लाभ न केवल स्वास्थ्य पर कम खर्च के रूप में है, बल्कि शिक्षा और कार्यक्षमता में भी परिलक्षित होता है। इसी प्रकार, पोषण अभियान का उद्देश्य कुपोषण, एनीमिया और स्टंटिंग जैसी स्थितियों को रोकना है, जो भारत की कार्यबल गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। एक कुपोषित बच्चा न तो शारीरिक रूप से पूर्ण विकसित होता है, न ही मानसिक रूप से और उसका कौशल प्रशिक्षण में भी योगदान सीमित रहता है। अत: पोषण में निवेश, भविष्य की कार्यशक्ति में निवेश है।
भारत का मिशन इंद्रधनुष और हाल ही में शुरू हुआ यू-विन डिजिटल प्लेटफॉर्म टीकाकरण के क्षेत्र में प्रशासनिक दक्षता और वैज्ञानिक सोच का प्रतीक है। एक बच्चे को जीवन भर इलाज कराने से बेहतर है कि उसे बचपन में दो इंजेक्शन लगाकर सुरक्षित कर दिया जाए। यह रणनीति सार्वजनिक वित्त की दृष्टि से भी अधिक किफायती है। उदाहरण के लिए, सर्वाइकल कैंसर वैक्सीन को किशोरियों के लिए लागू करना एक ऐसा निर्णय है, जो स्वास्थ्य व्यय में भारी कटौती और महिलाओं की कार्यक्षमता में वृद्धि सुनिश्चित करेगा।
2025-26 के बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 95,957.87 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 9.46 प्रतिशत अधिक है। यह सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है, परंतु इसमें रोकथाम को लेकर स्वतंत्र और ठोस उपशीर्षक होना अभी बाकी है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 37,226.92 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं, जिसमें निवारक उपाय शामिल हैं। प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हैल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के तहत 4,200 करोड़ की राशि का उपयोग स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है। यदि इन राशियों का 60 प्रतिशत हिस्सा विशुद्ध रूप से निवारक गतिविधियों (जांच शिविर, जागरूकता अभियान, स्कूल हैल्थ प्रोग्राम, योग केंद्र और डिजिटल परामर्श) में लगाया जाए, तो इलाज पर होने वाले खर्च में कम-से-कम 30 प्रतिशत की कटौती हो सकती है। इससे सरकार को राजकोषीय घाटा कम करने में मदद मिलेगी, जिससे शिक्षा, अधोसंरचना और रक्षा जैसे अन्य क्षेत्रों में अधिक निवेश संभव होगा।
सरकार को चाहिए कि वह निवारक स्वास्थ्य सेवाओं को मात्र एक स्वास्थ्य घटक न मानकर, उसे केंद्रीय बजटीय योजना की विशिष्ट श्रेणी के रूप में चिह्नित करे, ताकि नीति-निर्माण में इसकी प्राथमिकता न केवल स्पष्ट हो, बल्कि इसके लिए समर्पित संसाधन भी सुनिश्चित किए जा सकें। आज आवश्यकता इस बात की है कि स्वास्थ्य शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में अनिवार्य स्थान दिया जाए, जिससे बाल्यकाल से ही शरीर, पोषण, स्वच्छता और जीवनशैली के प्रति चेतना विकसित हो। इसी क्रम में, “स्कूल हैल्थ कार्ड प्रणाली” को लागू किया जाना अत्यंत आवश्यक है, जो बच्चों के स्वास्थ्य की निरंतर निगरानी और उपचार में सहायक सिद्ध हो सकती है। देश के जनजातीय और दूरस्थ इलाकों में मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयां तैनात की जानी चाहिए, जो न केवल प्राथमिक जांच और टीकाकरण की सुविधा दें, बल्कि जागरूकता अभियान भी चलाएं। इसके साथ ही टेलीमेडिसिन नेटवर्क को सुदृढ़ किया जाना चाहिए, ताकि विशेषज्ञ डॉक्टरों की सलाह शहरी सीमाओं से निकलकर ग्रामांचलों तक पहुंचे। इसके अतिरिक्त, स्वस्थ कार्यस्थल नीति का निर्माण आवश्यक है, जिसमें हर संस्थान अपने कर्मचारियों के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच, योग व व्यायाम सुविधा और मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सुनिश्चित करे। फिटनेस पर टैक्स छूट, जिम और वेलनेस गतिविधियों पर कर प्रोत्साहन जैसे उपाय नागरिकों को सक्रिय जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करेगा। साथ ही, स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में प्रिवेंटिव कवरेज को बाध्यकारी बनाया जाए, जिससे लोग नियमित जांच की ओर प्रवृत्त हों। इसके अलावा, स्थानीय निकायों को सशक्त बनाते हुए उन्हें निवारक स्वास्थ्य योजनाओं के संचालन और निगरानी में भागीदार बनाया जाना चाहिए। स्वस्थ ग्राम और स्वस्थ नगर मिशन जैसी पहलें भी शुरू की जा सकती हैं, जो प्रतिस्पर्धात्मक आधार पर स्वास्थ्य सूचकांकों के आधार पर प्रोत्साहन प्रदान करें।
किसी राष्ट्र के स्वास्थ्य का प्रथम प्रहरी स्वयं उसका नागरिक होता है। सरकार चाहे जितने भी योजनाएं बना ले, यदि जनमानस स्वयं सजग न हो तो न कोई योजना फलित होगी और न कोई नीति सफल। इसलिए यह प्रत्येक भारतीय की नैतिक और आर्थिक जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दे। स्वास्थ्य कोई आकस्मिक घटना नहीं, बल्कि सतत जीवनशैली का परिणाम है। यदि व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में नियमित व्यायाम, संतुलित और मौसमी आहार, प्राकृतिक जीवनचर्या और समय पर चिकित्सकीय जांच को शामिल कर ले, तो अनेक रोगों की संभावना स्वयं ही समाप्त हो जाती है। स्वच्छता, न केवल शरीर की बल्कि वातावरण की भी, रोगों को आमंत्रित नहीं होने देती। जलजनित व वायुवाहित बीमारियों से बचाव, व्यक्तिगत स्वच्छता और स्वच्छ पेयजल सेवन से किया जा सकता है। रोग से दूर रहना केवल अस्पताल से दूर रहना नहीं है, बल्कि यह मानसिक शांति, पारिवारिक सौहार्द और सामाजिक सक्रियता की पुन: प्राप्ति है। जब व्यक्ति स्वस्थ होता है, तो उसकी कार्यक्षमता बढ़ती है, उत्पादकता में वृद्धि होती है, और परिवार भी सुखी रहता है। इसके अतिरिक्त, लोगों को चाहिए कि वे दूसरों को भी जागरूक करें- स्वास्थ्य शिविरों में भाग लें, टीकाकरण को प्रोत्साहित करें और पोषण योजनाओं का लाभ लेने के लिए आसपास के लोगों को प्रेरित करें। वास्तव में स्वास्थ्य एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, सामूहिक उत्तरदायित्व है। जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी भूमिका निभाएगा, तभी ‘स्वस्थ भारत’ का सपना साकार हो सकेगा। भारत ने वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देखा है, तो उसे सबसे पहले अपने नागरिकों को रोगों से मुक्त करना होगा। रोकथाम को केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय उत्पादन, कुशल मानव संसाधन और सामाजिक स्थिरता की दृष्टि से भी देखना होगा। जब तक हर गांव और शहर में यह विचार नहीं पनपेगा कि “बीमारी को पहले ही रोको”, तब तक हम विकास की गति को स्थायी नहीं बना पाएंगे। सरकार यदि स्वास्थ्य को केवल इलाज तक सीमित न रखकर रोकथाम और सतत जागरूकता का माध्यम बना दे, तो न केवल जनस्वास्थ्य सुधरेगा, बल्कि देश की उत्पादकता और अर्थव्यवस्था भी उन्नति के पथ पर अग्रसर होगी।