वर्ष 2019-2021 के राष्ट्रीय पारिवारिक सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के अनुसार, भारत में लगभग 22.9 प्रतिशत पुरुष और 24 प्रतिशत महिलाएं मोटापे से पीडि़त हैं। वर्ष 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई थी कि मोटापे की समस्या युवा पीढ़ी के लिए बहुत गंभीर चिंता पैदा कर सकती है। वर्ष 2022 में, भारत में 5 से 19 वर्ष की आयु के 12.5 मिलियन बच्चे अधिक वजन के थे, जो वर्ष 1990 में मात्र 0.4 मिलियन थे। महिलाओं में मोटापे का आंकड़ा वर्ष 1990 में 2.4 मिलियन था, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 44 मिलियन हो गया है। महिलाओं और पुरुषों में मोटापे के मामले में, भारत 197 देशों में से 182वें स्थान पर आता है। वर्ष 2030 तक, देश में 27 मिलियन से अधिक मोटे बच्चे हो सकते हैं।
2035 तक लगभग 3.3 बिलियन वयस्क मोटे हो सकते हैं और 5 से 19 वर्ष के युवाओं की संख्या 770 मिलियन तक हो सकती है। आज, हर आठ में से एक व्यक्ति मोटापे की समस्या से परेशान है। पिछले वर्षों में मोटापे के मामले दोगुने हो गए हैं और बच्चों में भी यह समस्या चार गुना बढ़ गई है। 2022 में विश्वभर में 250 करोड़ लोग अधिक वजन वाले थे और अमरीका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे मोटे व्यक्तियों वाला देश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में कहा कि एक फिट और स्वस्थ राष्ट्र बनने के लिए हमें मोटापे की समस्या से निपटना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर हर देशवासी खाद्य तेल की खरीद 10 प्रतिशत कम कर दे, तो यह मोटापा कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। हाल के अध्ययनों के अनुसार, भारत में मोटापे की दर में तेजी से वृद्धि हो रही है।
विशेषज्ञों ने पाया है कि पेट के आसपास की चर्बी, जिसे एब्डॉमिनल फैट कहते हैं, भारतीयों में जल्दी बढ़ती है और इससे डायबिटीज और हृदय रोग जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। वहीं पिछले पांच वर्षों में भारत में मोटापा घटाने वाली दवाओं का बाजार चार गुना बढ़ा है। यह 2030 तक सालाना 46 प्रतिशत बढ़कर 22,800 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। भारत में मोटापा एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। इसे हल करने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर कदम उठाने होंगे। हम सभी को इस पहल में सक्रिय रूप से भाग लेना होगा। खाने में कम तेल का इस्तेमाल करना और मोटापे से निपटना सिर्फ एक व्यक्तिगत पसंद नहीं है, बल्कि परिवार के प्रति हमारी जिम्मेदारी भी है।