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आक्रोश से भरे बलूचिस्तान में हारी हुई जंग लड़ता पाकिस्तान

सुधाकर जी, रक्षा विशेषज्ञ

जयपुरMar 26, 2025 / 02:48 pm

Neeru Yadav

बीते 11 मार्च को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में क्वेटा से पेशावर जा रही कुछ सैनिकों सहित लगभग 400 यात्रियों से भरी ट्रेन ‘जाफर एक्सप्रेस’ का बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के लड़ाकों द्वारा अपहरण हाल के वर्षों के सबसे दुस्साहसी हमलों में से एक था। इस हमले ने सबको हिला दिया और 1948 में कलात रियासत के पाकिस्तान में जबरन विलय से उपजे गहरे और रिसते घाव को फिर से उजागर कर दिया। इसी महीने में बीएलए ने अलग-अलग हमलों में 90 पाक सैन्यकर्मियों सहित 106 लोगों को मारने (46 घायल) और एक बस को नष्ट करने का दावा किया। बीएलए के इन आत्मघाती हमलों में कई महिलाओं की सहभागिता यह दर्शाती है कि विद्रोह अब कबीलों से बाहर निकलकर शिक्षित मध्यवर्ग तक पहुंच चुका है। इसके अलावा अफगान सुरक्षा बलों से छीने गए अत्याधुनिक हथियारों से लैस तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान भी बीएलए के साथ गठजोड़ कर चुका है। आइएसआइएस (खुरासान) से इन गुटों के संबंध पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए और भी गंभीर खतरा बन गए हैं।
ट्रेन अपहरण से यह साफ है कि बीएलए के पास सुरक्षा बलों पर दुस्साहसी हमले करने की क्षमता भी है और स्पेशल फोर्सेज की भारी गोलीबारी का 24 घंटों से ज्यादा मुकाबला करने की ताकत भी। वारदात के दौरान विद्रोहियों द्वारा पूरी दुनिया तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का बख़ूबी इस्तेमाल ये भी दर्शाता है कि बीएलए की रणनीति अब ज्यादा संगठित और परिष्कृत हो चुकी है। बढ़ते बलूच अलगाववादी आंदोलन पर जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के सदर फजल-उर-रहमान पाकिस्तानी नेशनल असेंबली में खबरदार भी कर चुके हैं, ‘अगर बलूचिस्तान के जिले अपनी आजादी का ऐलान कर दें तो यूनाइटेड नेशंस उनकी खुदमुख्तारी को तस्लीम कर लेगा और पाकिस्तान टूट जाएगा।’
15 अगस्त 1947 को खान ऑफ कलात ने अपनी रियासत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। लेकिन, 27 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने कलात की खानत पर हमला किया और खान ऑफ कलात को जबरन कराची ले जाकर पाकिस्तान में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवा लिए। बलूच अलगाव आंदोलन की जड़ें बहुआयामी हैं। हालांकि, इसका मुख्य कारण कलात का जबरन विलय है, क्योंकि कलात के विधानमंडल के दोनों सदनों के स्पष्ट विलय विरोधी निर्णय के बावजूद इसे जबरन पाकिस्तान में मिलाया गया। बलूचिस्तान कोयला, तांबा, सोना और प्राकृतिक गैस से भरपूर है, लेकिन इन संसाधनों से स्थानीय जनता को कोई लाभ नहीं मिला। पंजाबी कुलीन वर्ग द्वारा यहां के संसाधनों की लूट से 70 प्रतिशत से अधिक बलूच लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रहे हैं। सैन्य उत्पीडऩ जोरों पर है। द वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स ने 5,000 से ज्यादा जबरन गायब होने की रिपोर्ट की है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के हिस्से के रूप में ग्वादर बंदरगाह जैसी विशाल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के बनने से देश के विभिन्न हिस्सों से लोग बलूचिस्तान में आने लगे हैं, जिससे बलूच आबादी की परेशानियां बढ़ी हैं और उसके हित प्रभावित हुए हैं। सामाजिक-आर्थिक विषमताओं के अलावा बलूचों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी कम हैं। नेशनल असेंबली में पंजाब की 173 सीटें हैं, जबकि कम आबादी के कारण बलूचिस्तान में केवल 20 हैं। इस कारण केंद्र सरकार पंजाब को अधिक संसाधन आंवटित करती है। इन तमाम कारणों से बलूचों का आक्रोश बढ़ रहा है। बलूच विद्रोह का इतिहास पुराना है, जिसकी शुरुआत 1948-50 में हुई। उसके बाद 1958-60, 1962-63 और 1973-1977 में और 2003 में शुरू हुआ पांचवां विद्रोह आज तक जारी है। हर विद्रोह पहले से अधिक लंबा, व्यापक और अधिक जनसमर्थन वाला रहा है। बलूचों का मानना है कि पाकिस्तानी सेना और पंजाबी शासकों द्वारा उनका ‘उपनिवेशीकरण’ किया जा रहा है।
बीएलए सबसे प्रमुख बलूच अलगाववादी समूह है। वर्ष 2000 से इसने कई घातक हमले किए हैं, जिनमें से अधिकांश पाकिस्तानी सेना, सुरक्षा बलों, पुलिस, पत्रकारों, नागरिकों और शिक्षा संस्थानों पर थे। बीएलए, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट, बलूच रिपब्लिकन गाड्र्स और सिंधुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी सहित कई विद्रोही समूह हैं, जो कथित तौर पर अब बलूच नेशनल आर्मी के तहत एकजुट हो गए हैं। बीएलए विद्रोहियों के अनुसार उनका लक्ष्य पाकिस्तान से आजादी और बलूच समाज में आंतरिक सुधार दोनों हैं। जैसे-जैसे बीएलए की मांग स्वायतता से अलगाव की तरफ बढ़ रही है, वैसे-वैसे पाकिस्तानी फौज की विद्रोहियों के खिलाफ फौजी कार्रवाइयां बलूचिस्तान के गमजदा बेटे-बेटियों को फिदायीन हमलावरों में तब्दील कर रही हैं। बलूचिस्तान कोई ऐसा मसला नहीं, जिसे बमबारी से हल किया जा सके।
जब तक इस्लामाबाद अपनी बंदूकों को सुधारों से नहीं बदलता, तब तक धमाके होते रहेंगे, लाशें गिरती रहेंगी और हुकूमत इसी धोखे में रहेगी कि वो एक ऐसी जंग जीत रही है, जो वो दरअसल बहुत पहले हार चुकी है। पाकिस्तान को उन राजनीतिक और आर्थिक मसलों को हल करना ही होगा, जो बेचैनी और बगावत को हवा दे रहे हैं।

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