आज भारत में जनसंख्या की औसत आयु 29 साल है, जबकि चीन की 38 साल, जो 2050 तक 50 से ऊपर होगी, अमरीका की 38 साल और यूरोप की 43 साल से अधिक है। भारत के अलावा ये विकसित देश तेजी से बूढ़े हो रहे हैं। ऐसे में युवाओं का जनसांख्यिकीय लाभ भारत को उत्पादकता, नवाचार और आर्थिक विकास में आगे ले जा सकता है, बशर्ते इसे सही दिशा मिले। लेकिन क्या हम इस अवसर का लाभ उठा पा रहे हैं? आज हमारे युवा मंदिर-मस्जिद, औरंगजेब जैसे ऐतिहासिक विवादों और धार्मिक राजनीति में उलझे हैं। आजादी के बाद आर्थिक मोर्चे पर भारत ने खेती में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है और सेवा क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन उद्योग और विनिर्माण में हम चीन जैसे देशों से काफी पीछे हैं। यह अंतर सिर्फ आंकड़ों का नहीं, बल्कि सोच और दृष्टिकोण का भी है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के 2023 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 15-29 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर 15-16त्न के बीच है। हर साल 1.2 करोड़ युवा नौकरी बाजार में कदम रखते हैं, लेकिन सिर्फ 50 लाख औपचारिक नौकरियां ही उपलब्ध होती हैं। नतीजा यह कि लाखों युवा कम कौशल वाली नौकरियों या गिग अर्थव्यवस्था में फंस जाते हैं। 2019 में रेलवे की एक लाख ग्रुप डी नौकरियों के लिए एक करोड़ से ज्यादा आवेदन आए, जिसमें इंजीनियरिंग स्नातक और डिग्रीधारक भी शामिल थे। यह स्थिति भारत में शिक्षा और रोजगार योग्य कौशल के बीच की गहरी खाई को उजागर करती है। चीन ने अपनी युवा शक्ति को सही दिशा में लगाकर 1980 से 2010 के बीच 10त्न की औसत वार्षिक जीडीपी वृद्धि हासिल की और अपनी अर्थव्यवस्था को 17 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाया। यह आज भारत की 3.5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था से पांच गुना ज्यादा है। चीन ने इस दौरान युवाओं के बीच कौशल विकास, औद्योगिकीकरण और निर्यात-आधारित मॉडल पर जोर दिया।
विश्व बैंक का अनुमान है कि चीन की करीब एक चौथाई आबादी औपचारिक रूप से कुशल है। वहीं, भारत में यह आंकड़ा सिर्फ पांच फीसदी है, जो जापान (80 प्रतिशत), यूके (68 प्रतिशत) और अमरीका (52 प्रतिशत) से बहुत पीछे है। अमरीका ने भी अपनी युवा ऊर्जा को नवाचार में लगाया। सिलिकॉन वैली इसका जीता-जागता सबूत है, जहां युवाओं ने गूगल, एपल और टेस्ला जैसी कंपनियां खड़ी कीं। भारत में इसरो अंतरिक्ष में उपलब्धियां हासिल कर रहा है, लेकिन कुछ चुनिंदा संस्थानों को छोड़कर युवाओं की विज्ञान और नवाचार में भागीदारी न के बराबर है। दक्षिण कोरिया की कहानी भी प्रेरणादायक है।
1970 में आर्थिक रूप से कमजोर इस देश ने युवा शक्ति और अनुसंधान व विकास (आरएंडडी) में निवेश कर खुद को बदल डाला। 1970 में उसका आरएंडडी खर्च जीडीपी का 0.4 प्रतिशत था, जो 2005 तक 2.5 प्रतिशत हो गया। आज सैमसंग और हुंडई जैसे ब्रांड वैश्विक बाजार में छाए हैं। भारत में आरएंडडी पर खर्च जीडीपी का सिर्फ 0.65 प्रतिशत है, जबकि चीन में 2.43 प्रतिशत और अमरीका में 2.8 प्रतिशत। पिछले कुछ सालों में भारत सरकार ने भी प्रभावी कदम उठाए हैं। स्किल इंडिया मिशन के तहत 2015 से अब तक 1.5 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया।
नई शिक्षा नीति 2020 शिक्षा को कौशल से जोडऩे की दिशा में एक प्रयास है। देश में 1.67 लाख से ज्यादा स्टार्टअप्स पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश फंडिंग, कुशल श्रम और बाजार की चुनौतियों से जूझ रहे हैं। हर साल 15 लाख इंजीनियरिंग स्नातक निकलते हैं, लेकिन नेशनल असेसमेंट एंड एक्सीलेरेशन काउंसिल की रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ 10त्न ही नौकरी के लिए तैयार हैं। इसी बीच, युवाओं में सोशल मीडिया को लेकर भी व्यर्थ का चलन बढ़ रहा है।
भारत में 2023 में 60 प्रतिशत से ज्यादा ट्रेंड्स धार्मिक या राजनीतिक थे। संबल, कब्र, औरंगजेब जैसे मुद्दों पर बहस छिड़ी रही। दूसरी ओर, चीन ने सोशल मीडिया से इतर युवाओं को टेक्नोलॉजी व विनिर्माण की ओर मोड़ा। नतीजा क्या? वह आज दुनिया की फैक्ट्री है। अगर हमारे युवाओं की ऊर्जा इन बहसों की बजाय रचनात्मक कार्यों में लगे, तो तस्वीर बदल सकती है। भारत को अपनी युवा शक्ति को सही दिशा देने के लिए बड़े कदम उठाने होंगे। स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रमों को और मजबूत करना होगा। जर्मनी की तरह ड्यूल एजुकेशन सिस्टम लागू किया जा सकता है, जहां पढ़ाई के साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण मिले। अगले दशक में आरएंडडी खर्च को जीडीपी का कम से कम 2त्न करना होगा। निजी क्षेत्र को इसमें शामिल करना जरूरी है।