धरती का तापमान बढ़ा रहीं हैं ग्रीन हाउस गैसें


उत्तर भारत में गर्मी अभी से कहर बरसाने लगी है जबकि अभी अप्रैल माह की शुरुआत ही हुई है। मौसम विभाग के मुताबिक, 6 अप्रैल से पारा बढ़ना शुरू हो चुका है और अधिकतम तापमान 40 डिग्री और न्यूनतम तापमान 20 डिग्री तक पहुंच गया है। हाल ही में दिल्ली समेत कई राज्यों में तापमान 42 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है। जानकारी के अनुसार दिल्ली के अलावा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और ओडिशा के शहरों में भी गर्मी का प्रकोप जारी रहेगा। हाल ही में राजस्थान के बाड़मेर में गर्मी ने नए रिकॉर्ड बनाए और यहां अधिकतम तापमान 45.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो अप्रैल के पहले सप्ताह में अब तक का सबसे अधिक तापमान है। यह सामान्य से 6.8 डिग्री अधिक है, जो एक चिंताजनक स्थिति है। गौरतलब है कि मौसम विभाग ने हाल ही में एक अलर्ट जारी किया है, जिसके अनुसार 6-10 अप्रैल के दौरान गुजरात के कुछ स्थानों पर गर्म हवाएं चलने की संभावना है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार सौराष्ट्र और कच्छ के कुछ स्थानों पर भीषण गर्मी की स्थिति रहने की संभावना है। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में ‘लू’ चलने की संभावना है। बहरहाल, इस साल फरवरी भी काफी गर्म रही थी और अब देश के 21 शहरों में अधिकतम तापमान का 42 डिग्री तक पहुंचना एक चेतावनी है कि अगर हम अभी भी पर्यावरण के प्रति नहीं चेते और धरती का तापमान इसी तरह से ही बढ़ता रहा, तो ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय( न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी)के एक अध्ययन के अनुसार, पूरी दुनिया को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले साल यानी कि वर्ष 2024 में भारत में वर्ष 1901 के बाद से सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया गया था। वर्ष 2024 में औसत तापमान 25.75 डिग्री सेल्सियस रहा, जिसने वर्ष 2016 के पिछले रिकॉर्ड को पार कर दिया था तथा यह बीते 123 साल के औसत से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक था।वैश्विक तापमान में भी वृद्धि हुई, जिससे वर्ष 2024 वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म वर्ष रहा। साल 2023 भी दुनिया का सबसे गर्म साल रहा था। वास्तव में, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में जलवायु परिवर्तन बहुत ही तेजी से हो रहा है और जलवायु परिवर्तन के नतीजे जितने लगते हैं, उससे कहीं अधिक खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं। दरअसल, जलवायु परिवर्तन में आज सबसे बड़ी भूमिका मनुष्य की ही है, क्यों कि आज धरती की आबादी लगातार बढ़ती चली जा रही है और आज भारत दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है।मानव जनित कार्यों के कारण आज धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि वर्ष 2024 के गर्म रहने के पीछे अल-नीनो प्रभाव भी है। अल-नीनो एक प्राकृतिक घटना है जिसके कारण भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान बढ़ जाता है।इससे हवाओं में बदलाव आता है और दुनिया भर के जलवायु पैटर्न पर बहुत असर पड़ता है। अल-नीनो के प्रभाव से दुनिया में सूखा व बाढ़ जैसी स्थितियां बन सकतीं हैं।फसल पैदावार पर भी प्रभाव पड़ता है तथा मौसम संबंधी आपदाएं बढ़ जाती हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज धरती के तापमान के बढ़ने के पीछे प्रमुख कारण ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन और मानवीय गतिविधियां ही हैं। वास्तव में, ग्रीन हाउस गैसें (कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन मुख्यतया) सूर्य के प्रकाश के लिए पारदर्शी होती हैं और पृथ्वी की सतह को गर्म करती हैं। वास्तव में,पृथ्वी की ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल की ऊष्मा को रोक लेती हैं तथा उसे अंतरिक्ष में जाने से रोकती हैं।इन गैसों की बढ़ी हुई सांद्रता इसके प्रभाव को बढ़ाती है, जिससे गर्मी स्थिर रहती है और वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। जीवाश्म ईंधन(कोयला ,तेल और प्राकृतिक गैस) के जलने तथा वनों की कटाई से भी धरती का तापमान बढ़ रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऑटोमोबाइल और जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग से धरती पर कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, खनन और पशु पालन जैसी गतिविधियाँ पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि धरती का तापमान बढ़ता है तो समुद्र का जल स्तर बढ़ता है, महासागरों की अम्लीयता बढ़ती है, सूखे और हीटवेव की स्थितियां उत्पन्न होती हैं। वनों में आग लगने का संकट भी बढ़ता है। जैव-विविधता की हानि के साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन भी होता है। बहरहाल, ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के ताजा अध्ययन ने यह चेतावनी दी है कि अगर धरती का औसत तापमान चार डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो 40 फीसदी वैश्विक संपत्ति के नष्ट होने का खतरा है, जबकि अब तक के शोध 11 फीसदी नुकसान की ही बात कहते आए हैं।सच तो यह है कि आज प्रकृति का संतुलन लगातार गड़बड़ा रहा है। प्राकृतिक संतुलन के गड़बड़ाने प्राकृतिक आपदाएं जन्म लेतीं हैं। मसलन, भूस्खलन, अतिवृष्टि, अनावृष्टि(सूखा) तथा चरम मौसमी घटनाएं ऐसी ही प्राकृतिक आपदाओं के उदाहरण हैं। तापमान बढ़ता है तो इसका असर फसल पैदावार पर भी पड़ता है, जल संकट की समस्या भी खड़ी हो जाती है। अंत में यही कहूंगा कि अब समय आ गया है कि इस संकट(धरती के बढ़ते तापमान) को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो वर्तमान पीढ़ी का यह परम दायित्व व नैतिक कर्तव्य बनता है कि वर्तमान पीढ़ी, भविष्य की पीढ़ियों के लिए ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की जिम्मेदारी ले। धरती के पर्यावरण की रक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी है। इसके लिए हमें पौधारोपण और जल संरक्षण पर ध्यान देना होगा। पर्यावरण संरक्षण नीतियों का सही कार्यान्वयन बहुत ही जरूरी और आवश्यक है। सबसे बड़ी बात जागरूकता की है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पर्यावरण ही हमारी असली धरोहर है।
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