दरअसल, चिकित्सा जैसे पेशे में योग्यता और डिग्री की जांच परख का कमजोर सिस्टम ही ऐसे नीम हकीमों को बढ़ावा देने का काम करता है। सरकारी सिस्टम में भ्रष्टाचार इस तरह से घुस गया है कि कोई भी अपने शैक्षणिक योग्यता के फर्जी दस्तावेज तक तैयार करा लेता है। चिकित्सकों को प्रेक्टिस के लिए संबंधित प्रदेश की एमसीआइ के प्रमाण पत्र के बिना ही अस्पताल में नियुक्ति देने वाले भी कम अपराधी नहीं हैं। अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी इस प्रकरण में सख्ती की बात कही है तो मानवाधिकार आयोग का जांच दल भी दमोह आने की तैयारी में है। लेकिन चिंता इसी बात की है कि जिम्मेदार भी दमोह जैसी घटना सामने आने के बाद ही हरकत में आते हैं। फर्जी चिकित्सक एक तरह से समूचे चिकित्सकीय तंत्र को बदनाम करते हैं। आए दिन जब ऐसे नीम हकीम सामने आते हैं तो चिकित्सक जैसे पवित्र पेशे के प्रति भी लोगों का भरोसा डगमगाने लगता है। विदेश से एमबीबीएस की डिग्री को मान्यता के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने हाल में पुख्ता प्रक्रिया बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं। चिकित्सा क्षेत्र में तो सभी स्तर पर जांच-पड़ताल की सख्त आवश्यकता है। यह इसलिए भी कि जरा सी चूक से लोगों की जान पर बन सकती है। न सिर्फ फर्जी चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई हो, बल्कि बिना पड़ताल इन्हें अपने साथ जोडऩे वाले चिकित्सा संस्थानों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई हो।