scriptसंपादकीय : शिक्षा का उद्देश्य- वैज्ञानिक सोच या धार्मिक पूर्वाग्रह | Editorial: The aim of education- scientific thinking or religious prejudice | Patrika News
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संपादकीय : शिक्षा का उद्देश्य- वैज्ञानिक सोच या धार्मिक पूर्वाग्रह

कर्नाटक के चामराजनगर के एक निजी स्कूल में विज्ञान प्रदर्शनी के समय चौथी कक्षा की एक छात्रा द्वारा प्रस्तुत मॉडल और उसके विवादित बयान ने शिक्षा प्रणाली के उद्देश्यों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सिर्फ एक बालिका की व्यक्तिगत सोच का मामला नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि बच्चों के मन […]

जयपुरMar 26, 2025 / 11:31 pm

Veejay Chaudhary

कर्नाटक के चामराजनगर के एक निजी स्कूल में विज्ञान प्रदर्शनी के समय चौथी कक्षा की एक छात्रा द्वारा प्रस्तुत मॉडल और उसके विवादित बयान ने शिक्षा प्रणाली के उद्देश्यों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सिर्फ एक बालिका की व्यक्तिगत सोच का मामला नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि बच्चों के मन में वैचारिक ध्रुवीकरण और धार्मिक पूर्वाग्रह कितनी गहराई से समाए हुए हैं। धर्म, राजनीति और विचारधारा का शिक्षा प्रणाली पर प्रभाव केवल किसी एक देश की समस्या नहीं है, बल्कि एक वैश्विक मुद्दा है। अमरीका में विकासवाद बनाम सृजनवाद की बहस शिक्षा प्रणाली पर धार्मिक हस्तक्षेप का प्रमाण है। फ्रांस में सार्वजनिक स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध यह दिखाता है कि राज्य और धर्म का टकराव शिक्षा नीति को भी प्रभावित करता है। अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान लड़कियों की शिक्षा पर लगी पाबंदियां यह प्रमाणित करती हैं कि जब धार्मिक कट्टरता हावी हो जाती है, तो उसका सबसे अधिक खामियाजा महिलाओं और बच्चों को भुगतना पड़ता है। वहीं, चीन में सरकार द्वारा नियंत्रित शिक्षा प्रणाली यह दिखाती है कि राज्य कैसे विचारधारा को नियंत्रित कर सकता है और बच्चों को स्वतंत्र विचारों से वंचित कर सकता है।
चौथी कक्षा की बच्ची का यह सोचना कि ‘बुर्का पहनने से मरने के बाद शरीर सुरक्षित रहता है, जबकि छोटे कपड़े पहनने पर नर्क में सांप और बिच्छू शरीर को खा जाते हैं’, यह किसी मासूम कल्पना का परिणाम नहीं हो सकता। यह स्पष्ट रूप से उस वातावरण का प्रतिबिंब है, जिसमें वह पल-बढ़ रही है। परिवार, समाज और स्कूल में दी जा रही शिक्षाओं का असर बच्चों की सोच पर पड़ता है। यदि इस तरह की विचारधारा बच्चों में जड़ें जमा रही हैं, तो यह सिर्फ एक संयोग नहीं बल्कि एक चेतावनी है। यह सवाल उठता है कि अगर यह वीडियो वायरल न होता, तो क्या शिक्षा विभाग इसकी जांच करता? क्या प्रशासन और समाज इसके बारे में संज्ञान लेते? यह घटना यह दर्शाती है कि हमारे शिक्षा तंत्र में जवाबदेही और निगरानी की भारी कमी है। समाधान के तौर पर स्कूलों को धार्मिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों की परिधि को तोड़ते हुए, बच्चों को तर्कशील बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसमें शिक्षकों और अभिभावकों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। बच्चों को खुले दिमाग से सोचने और सवाल करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा केवल कार्यक्रम तक ही सीमित न रह जाए। शिक्षा, व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से सोचने, नए विचारों की खोज करने और अपनी बुद्धि का जिम्मेदारी से उपयोग करने की क्षमता प्रदान करती है। जब तक वैश्विक स्तर पर शिक्षा प्रणाली में धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों का नाश नहीं होगा, तब तक बच्चों को तार्किक और स्वतंत्र रूप से विचारवान बना पाना संभव नहीं होगा।

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