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भावी पीढ़ी के लिए अमूल्य धरोहरों का संरक्षण जरूरी

— डॉ. दिनेश जांगिड ‘सारंग’
(लेखक वरिष्ठ आईआरएस अधिकारी हैं।)

जयपुरApr 18, 2025 / 01:01 pm

विकास माथुर

किसी भी समाज के लिये उसकी धरोहर न केवल एक गर्व का विषय होती है बल्कि आने वाली पीढियों के लिये प्रेरणा का भी स्रोत होती है। हमारी समृद्ध धरोहर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों में हमारा मार्ग प्रशस्त करती है।
धरोहर वह सब कुछ है जो हमें हमारे पूर्वजों से हमें विरासत में मिला है। मुख्य रूप से हम धरोहर को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं- मूर्त धरोहर एवं अमूर्त धरोहर। मूर्त धरोहर में हमारी वो विरासत हैं जिन्हें हम देख सकते हैं- विशाल इमारतें, किले, मंदिर, ऐतिहासिक स्थल, स्मारक, हस्तशिल्प, साहित्य आदि। अमूर्त धरोहर में हमारी समृद्ध परंपराएं, लोकगीत, लोक-कथाएं, विश्वास, ज्ञान, भाषा, संस्कार आदि शामिल है।
विश्व में 18 अप्रैल को ही विश्व धरोहर दिवस क्यों मनाया जाता है, इसका भी एक कारण है। विश्व की सभी सामाजिक-सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण और उनके प्रति सामान्य स्तर पर मानवीय चेतना का प्रचार-प्रसार करने के लिये अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद (इकोमोस-ECOMOS) ने सन 1982 में हर वर्ष 18 अप्रैल को मनाने का प्रस्ताव रखा। इसलिये इसे विश्व स्मारक एवं स्थल दिवस भी कहा जाता है। इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक परिषद (यूनेस्को) ने 1983 में स्वीकृत कर लिया। तब से प्रति वर्ष 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस अथवा विश्व स्मारक एवं स्थल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यूनेस्को द्वारा 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस की मान्यता देने के पीछे एक उदात्त भाव है। हमारी विरासत हमारे पूर्वजों के हजारों वर्षों के ज्ञान एवं अनुभव का उपहार है। यह विश्वभर में हमारी सांस्कृतिक विविधता का परिचायक है। हमारी धरोहर हमें हमारे इतिहास से जोड़ती है। हमारी धरोहर हमारी महान मानव सभ्यता की जड़ें हैं। इन जड़ों को सींचना और हमारी विरासत को सरंक्षित कर भावी पीढियों के लिये बचाकर रखना हमारा फर्ज है। आम जनमानस तक यही संदेश पहुंचाने के लिये यूनेस्को द्वारा 18 अप्रैल को हर वर्ष इस दिन विश्व के ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण करवाया जाता है। लोगों को इनके बारे में बताया जाता है। इनके संरक्षण एवं संवर्द्धन के बारे में चर्चायें की जाती है। इसी भावना के अनुरूप यूनेस्को द्वारा विभिन्न धरोहरों को चिन्हित किया जाता है और विश्व धरोहरों की एक सूची बनायी जाती है।
जिन धरोहरों को विश्व धरोहर सूची में स्थान मिलता है उनके संरक्षण में यूनेस्को द्वारा भी सहायता की जाती है। उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों वाली धरोहरों का चयन विश्व धरोहर समिति द्वारा किया जाता है। भारत की अब तक लगभग 43 धरोहरों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। इनमें से 35 सांस्कृतिक धरोहर, 7 प्राकृतिक धरोहर एवं कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान मिश्रित धरोहर के रूप में सूचीबद्ध है। ताजमहल, महाबलीपुरम, अजंता-एलोरा गुफायें, कोणार्क का सूर्य मंदिर, हंपी, खजुराहो के मंदिर, पुराना जयपुर शहर, राजस्थान के पहाड़ी किले, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जंतर-मंतर, कुतुब मीनार आदि विश्व धरोहर सूची में शामिल कुछ भारतीय विरासतें हैं।
हमारे इतिहास, संस्कृति और पहचान को बनाये रखने के लिये धरोहरों का महत्वपूर्ण स्थान है। यह हमारे लिये गर्व और प्रेरणा का स्रोत होती है। इनका संरक्षण न केवल यूनेस्को या किसी अन्य सरकार का काम है बल्कि विश्व के हरेक नागरिक को इनके संरक्षण का विचार मन में रखना चाहिये।

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