यूनेस्को द्वारा 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस की मान्यता देने के पीछे एक उदात्त भाव है। हमारी विरासत हमारे पूर्वजों के हजारों वर्षों के ज्ञान एवं अनुभव का उपहार है। यह विश्वभर में हमारी सांस्कृतिक विविधता का परिचायक है। हमारी धरोहर हमें हमारे इतिहास से जोड़ती है। हमारी धरोहर हमारी महान मानव सभ्यता की जड़ें हैं। इन जड़ों को सींचना और हमारी विरासत को सरंक्षित कर भावी पीढियों के लिये बचाकर रखना हमारा फर्ज है। आम जनमानस तक यही संदेश पहुंचाने के लिये यूनेस्को द्वारा 18 अप्रैल को हर वर्ष इस दिन विश्व के ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण करवाया जाता है। लोगों को इनके बारे में बताया जाता है। इनके संरक्षण एवं संवर्द्धन के बारे में चर्चायें की जाती है। इसी भावना के अनुरूप यूनेस्को द्वारा विभिन्न धरोहरों को चिन्हित किया जाता है और विश्व धरोहरों की एक सूची बनायी जाती है।
जिन धरोहरों को विश्व धरोहर सूची में स्थान मिलता है उनके संरक्षण में यूनेस्को द्वारा भी सहायता की जाती है। उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों वाली धरोहरों का चयन विश्व धरोहर समिति द्वारा किया जाता है। भारत की अब तक लगभग 43 धरोहरों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। इनमें से 35 सांस्कृतिक धरोहर, 7 प्राकृतिक धरोहर एवं कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान मिश्रित धरोहर के रूप में सूचीबद्ध है। ताजमहल, महाबलीपुरम, अजंता-एलोरा गुफायें, कोणार्क का सूर्य मंदिर, हंपी, खजुराहो के मंदिर, पुराना जयपुर शहर, राजस्थान के पहाड़ी किले, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जंतर-मंतर, कुतुब मीनार आदि विश्व धरोहर सूची में शामिल कुछ भारतीय विरासतें हैं।
हमारे इतिहास, संस्कृति और पहचान को बनाये रखने के लिये धरोहरों का महत्वपूर्ण स्थान है। यह हमारे लिये गर्व और प्रेरणा का स्रोत होती है। इनका संरक्षण न केवल यूनेस्को या किसी अन्य सरकार का काम है बल्कि विश्व के हरेक नागरिक को इनके संरक्षण का विचार मन में रखना चाहिये।