युवा, विज्ञान और भारत की अपेक्षाएं
भारतीय युवाओं की प्रतिभा और क्षमता अद्वितीय है। देश के कई युवा वैज्ञानिक, इंजीनियर और उद्यमी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हैं। आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी टेक कंपनियों में भारतीय मूल के वैज्ञानिक और इंजीनियर अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। भारत के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान जैसे आइआइटी, आइआइएससी, इसरो, डीआरडीओ, टीआइएफआर और कई अन्य राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय एवं तकीनीकी संस्थान वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
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मिलिंद कुमार शर्मा, एमबीएम विश्वविद्यालय, जोधपुर में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि 21वीं सदी युवा, तकनीकी प्रगति, वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार की सदी है, जिसमें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाले राष्ट्र बड़ी तेजी से प्रगति कर रहे हैं। भारत ने भी पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, परंतु अभी भी इसे अपेक्षित वैश्विक नेतृत्व तक पहुंचने के लिए युवाओं को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
भारतीय युवाओं की प्रतिभा और क्षमता अद्वितीय है। देश के कई युवा वैज्ञानिक, इंजीनियर और उद्यमी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हैं। आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी टेक कंपनियों में भारतीय मूल के वैज्ञानिक और इंजीनियर अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। भारत के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान जैसे आइआइटी, आइआइएससी, इसरो, डीआरडीओ, टीआइएफआर और कई अन्य राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय एवं तकीनीकी संस्थान वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। इन संस्थानों से निकले युवा वैज्ञानिक और इंजीनियर न मात्र देश में अपितु वैश्विक मंच पर भी भारत का नाम रोशन कर रहे हैं। हाल के वर्षों में इसरो ने चंद्रयान, आदित्य एल-1 और मंगलयान जैसी गर्व करने योग्य उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसने निसंदेह भारत को विश्व पटल पर अंतरिक्ष विज्ञान में एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित किया है। दूसरी ओर डिजिटल इंडिया अभियान के अंतर्गत देश में तकनीकी नवाचार को निरंतर बढ़ावा मिला है, जिससे युवा डिजिटल स्टार्टअप और नवाचार के क्षेत्र में आगे आ रहे हैं। स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टैंड अप इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी सरकारी योजनाएं नवाचार और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित कर रही हैं, जिनका प्रमुख उद्देश्य युवाओं को स्वावलंबी बनाकर नए विचारों के स्वप्न को साकार करना है। फिर भी अभी भारतीय युवाओं को वैश्विक नेतृत्व तक पहुंचाने के लिए महती सुधारों की आवश्यकता है। सबसे पहली आवश्यकता शिक्षा प्रणाली में सुधार की है। पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को अधिक व्यावहारिक और अनुसंधान-आधारित बनाना आवश्यक है जिससे विद्यार्थी वैज्ञानिक सोच को विकसित कर सकें। विज्ञान और तकनीक में रुचि बढ़ाने के लिए प्रयोगशाला-आधारित शिक्षा, शोध परियोजनाओं और इनोवेशन केंद्रों की स्थापना आवश्यक है। विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विज्ञान और गणित के प्रति रुचि जगाने के लिए आधुनिक शिक्षण पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिए। साथ ही, तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ), मशीन लर्निंग, डेटा साइंस, जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष विज्ञान, सेमीकंडक्टर और सतत ऊर्जा जैसे उभरते हुए क्षेत्रों में विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सही क्रियान्वयन से संभवत: इसके सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।
भारत में अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में भी अधिक निवेश की आवश्यकता है। विकसित देशों की अपेक्षा भारत में अभी भी वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए बहुत कम संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं, जिससे युवा वैज्ञानिकों को अपने विचारों को साकार करने में कठिनाई होती है। सरकार और निजी क्षेत्र इस दिशा में और अधिक ध्यान दें, तो भारतीय युवा विज्ञान और नवाचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां प्राप्त कर सकते हैं। अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए विश्वस्तरीय प्रयोगशालाओं, वित्तीय सहायता और अनुभवी मार्गदर्शकों की आवश्यकता होती है, जिससे युवा वैज्ञानिक अपने शोध को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ा सकें। भारत सरकार की अनुसंधान आधारित नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना एवं इसका उचित क्रियान्वयन राज्य पोषित तकनीकी संस्थानों में कार्यरत विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के प्रोत्साहन के लिए मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है। भारत में स्टार्टअप संस्कृति तेजी से विकसित हो रही है, लेकिन इसे और अधिक समर्थन की आवश्यकता है। युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता, मेंटरशिप और बाजार में उचित अवसर दिए जाने चाहिए। वर्तमान में कई युवा भारतीय इनोवेटर्स वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए नए-नए विचारों पर काम कर रहे हैं, उन्हें अभी भी उचित संसाधनों की कमी के कारण अपने प्रयासों को साकार करने में कठिनाई होती है, विशेषत: यदि वे छोटे कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं तो। सरकार और उद्योग जगत को मिलकर एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा, जहां नवाचार को उचित मान्यता एवं प्रोत्साहन मिले और युवा अपनी उद्यमशीलता की क्षमता पूर्ण विकसित कर सकें। ओपन एआइ, डीपसीक मॉडल भारत के युवाओं के लिए रोल मॉडल हो सकते हैं।
तकनीकी प्रशिक्षण भी एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें सुधार लाने की आवश्यकता है। आधुनिक युग में केवल पारंपरिक शिक्षा पर्याप्त नहीं है, बल्कि युवाओं को नवीनतम तकनीकों में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, रोबोटिक्स, नैनो टेक्नोलॉजी, साइबर सुरक्षा, सेमीकंडक्टर, सप्लाई चैन मैनेजमेंट और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करने वाले युवा ही आने वाले समय में वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर सकेंगे। इसके लिए उद्योग और शिक्षण संस्थानों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है जिससे युवाओं को आधुनिक औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षित किया जा सके। प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना का दायरा सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योगों तक बढ़ाकर इस दिशा में कार्य किया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी भारतीय युवाओं के सशक्तीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत को विश्व के अग्रणी वैज्ञानिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों और उद्योगों के साथ साझेदारी स्थापित करनी होगी, जिससे भारतीय युवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने के अवसर मिले। इससे उन्हें वैश्विक समस्याओं को समझने और उनके समाधान खोजने में आवश्यक जानकारी, अनुभव व सहायता मिलेगी। इसके अतिरिक्त, अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं, सम्मेलनों, कार्यशालाओं और शोध कार्यक्रमों में भारतीय युवाओं की अधिकाधिक सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने से उनकी प्रतिभा को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिलेगी। इंडियन डायस्पोरा इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
भारत के विकसित राष्ट्र बनने की संकल्पना मात्र आर्थिक विकास तक सीमित नहीं है, अपितु यह वैज्ञानिक नवाचार, तकनीकी सशक्तीकरण और जागरूक युवा शक्ति के सक्रिय योगदान पर भी निर्भर है। निसंदेह विज्ञान न केवल युवाओं को नेतृत्व प्रदान करता है, यह उन्हें सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति के लिए एक सशक्त माध्यम भी बनाता है।
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