वैदिक ज्ञान के जरिए विज्ञान में नवाचार के लिए युवा हों प्रेरित
विज्ञान और नवाचार में वैश्विक नेतृत्व के लिए युवाओं में आध्यात्मिक ज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समन्वय होना भी बेहद जरूरी है।
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अर्चना परसाई गहलोत, फाउंडर अस्माकम व आइआइटी बॉम्बे एलुमनी वर्तमान तकनीकी प्रगति का वैदिक ज्ञान और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ समन्वय युवाओं को उन नवाचारों के लिए प्रेरित कर सकता है जो मानव प्रगति और पर्यावरणीय भलाई दोनों के साथ मेल खाते हों। इसके लिए वैज्ञानिक अनुसंधान के वैदिक आधार के बारे में जानना चाहिए जैसे ऋग्वेद और अथर्ववेद ये प्राचीन ग्रंथ ब्रह्मांड विज्ञान, गणित और चिकित्सा से संबंधित महत्त्वपूर्ण ज्ञान प्रदान करते हैं, जो यह दर्शाता है कि भारत में हमेशा से विज्ञान और आध्यात्मिकता सह-अस्तित्व में रहे हैं। वहीं न्याय और वैशेषिक दर्शन तर्क, विवेक और अनुभवजन्य साक्ष्यों पर बल देती हैं, जो आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए आवश्यक सिद्धांत हैं। गीता में आत्म अनुशासन, धैर्य और कर्तव्य (कर्म योग) की शिक्षा दी गई है, जो भविष्य के वैज्ञानिक और इनोवेटर्स के लिए आवश्यक गुण हैं।
विज्ञान और नवाचार में वैश्विक नेतृत्व के लिए युवाओं में आध्यात्मिक ज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समन्वय होना भी बेहद जरूरी है। इसके लिए उन्हें कुछ अहम सूत्र अपनाने चाहिए जैसे ध्यान और रचनात्मकता, नैतिक विज्ञान, जिसमें पतंजलि के योगसूत्रों में वर्णित यम और नियम वैज्ञानिक अनुसंधान में ईमानदारी, स्थिरता और जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करते हैं। युवाओं को इस बात पर विचार करना होगा कि हमारे प्राचीन ज्ञान को नवीनतम तकनीकी विकास में कैसे समन्वित किया जा सकता है, ताकि दुनिया को बेहतर बनाने की दिशा में नवाचार किए जा सकें। आज एआइ का युग है। एआइ और वैदिक ज्ञान के बीच तालमेल बिठाकर नवाचार किए जा सकते हैं। संस्कृत का व्याकरण संरचित है, जो नेचुरल लेंग्वेज प्रोसेसिंग और एआइ के लिए आदर्श है। भारतीय युवा संस्कृत भाषा मॉडल, कंप्यूटर लिंग्विस्टिक्स और ऑटोमेटेड ट्रांसलेशन में शोध कर सकते हैं। वैदिक धर्मशास्त्र और कर्म सिद्धांत से प्रेरित होकर एथिकल एआइ बनाया जा सकता है, जो मानवता के कल्याण के लिए जिम्मेदारी से कार्य करे। न्याय और मीमांसा दर्शन से प्रेरित एआइ आधारित लॉजिक और डिसीजन-मेकिंग सिस्टम बनाए जा सकते हैं। वहीं यदि क्वांटम कंप्यूटिंग और भारतीय दर्शन की बात करें तो वेदांत में वर्णित माया (भ्रम) का सिद्धांत क्वांटम सुपरपोजिशन और ऑब्जर्वर इफेक्ट से मेल खाता है। भारतीय युवा इस क्षेत्र में नवीन अनुसंधान कर सकते हैं। ध्यान और योग को न्यूरोसाइंस व क्वांटम कंप्यूटिंग के साथ जोड़कर मशीन लर्निंग और कृत्रिम चेतना (आर्टिफिशियल कॉन्शियनेस) पर अनुसंधान किया जा सकता है। आयुर्वेद में वर्णित प्रकृति( वात, पित्त और कफ) को आधुनिक जेनेटिक्स और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन के साथ जोड़ा जा सकता है। भारतीय रसशास्त्र से प्रेरणा लेकर बायोकंपैटिबल नैनोमैटेरियल्स विकसित किए जा सकते हैं, जो नई औषधियों और दीर्घायु अनुसंधान में सहायक होंगे। वैदिक गणित के सूत्रों का उपयोग ब्लॉकचेन एन्क्रिप्शन और साइबर सुरक्षा में किया जा सकता है।
भारतीय युवाओं को सशक्त बनाने के लिए ये उपाय किए जाएं
वैदिक-तकनीकी गुरुकुल: आधुनिक तकनीकों (एआइ, क्वांटम कम्प्यूटिंग, बायोटेक, स्पेस साइंस) और वैदिक ज्ञान को जोड़ने वाले रिसर्च इनोवेशन सेंटर स्थापित किए जाएं।
हैकथॉन और रिसर्च ग्रांट: वैदिक विज्ञान और आधुनिक तकनीक को मिलाकर नए प्रोजेक्ट्स पर काम करने के लिए इनोवेशन प्रतियोगिताएं और रिसर्च ग्रांट दी जाएं।
आध्यात्मिक विज्ञान शिक्षा: भगवद गीता आधारित नेतृत्व पाठ्यक्रमों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी शिक्षा में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
महान विचारकों से मार्गदर्शन: युवाओं को उन वैज्ञानिक और आध्यात्मिक नेताओं से जोड़ना, जो परंपरा और आधुनिकता का समन्वय कर रहे हैं।
उद्योग और अकादमिक सहयोग: इसरो, डीआरडीओ और आइआइटीज और वैश्विक संस्थानों के साथ साझेदारी कर वैदिक टेक्नोलॉजी इनोवेशन को बढ़ावा दिया जाए।
इस दृष्टिकोण से भारतीय युवा न केवल विज्ञान और नवाचार में ग्लोबल लीडर्स बनेंगे, बल्कि वे आध्यात्मिकता और नैतिक मूल्यों के साथ एक नई तकनीकी क्रांति का नेतृत्व भी कर पाएंगे।
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