scriptअस्थिरता के माहौल में बिजनेस लीडर्स को रहना होगा तैयार | 2025 को अस्थिरता से भरा साल माना जा रहा है, जिसमें कई बड़ी घटनाएं हो सकती हैं जो वैश्विक स्तर पर व्यवसायों को प्रभावित करेंगी। ऐसे माहौल में व्यापार को सुचारू रूप से चलाने के लिए बिजनेस लीडर्स को इन बदलावों के लिए पहले से तैयार रहना होगा। | Patrika News
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अस्थिरता के माहौल में बिजनेस लीडर्स को रहना होगा तैयार

2025 को अस्थिरता से भरा साल माना जा रहा है, जिसमें कई बड़ी घटनाएं हो सकती हैं जो वैश्विक स्तर पर व्यवसायों को प्रभावित करेंगी। ऐसे माहौल में व्यापार को सुचारू रूप से चलाने के लिए बिजनेस लीडर्स को इन बदलावों के लिए पहले से तैयार रहना होगा।

जयपुरFeb 27, 2025 / 09:13 pm

Jagmohan Sharma

2025 में बदलती दुनिया में बिजनेस को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले सूत्र

नई दिल्ली. 2025 को अस्थिरता से भरा साल माना जा रहा है, जिसमें कई बड़ी घटनाएं हो सकती हैं जो वैश्विक स्तर पर व्यवसायों को प्रभावित करेंगी। ऐसे माहौल में व्यापार को सुचारू रूप से चलाने के लिए बिजनेस लीडर्स को इन बदलावों के लिए पहले से तैयार रहना होगा। हालाँकि 2025 में भारत के दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बनने की संभावना जताई जा रही है, लेकिन इसकी वृद्धि थोड़ी धीमी होने की उम्मीद है। IMF (आईएमएफ) का अनुमान है कि 2025 में भारत की विकास दर 6.5% रहेगी, जो वैश्विक औसत 3.2% से काफी अधिक है। इससे साफ है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूती बनाए रखेगा। लेकिन इसका भारतीय कंपनियों और उद्योगों पर क्या असर पड़ेगा।
अवसर अब भी मौजूद हैं…
आईपीएम इंडिया के प्रबंध निदेशक नवनील कर ने बताया कि देश में बढ़ते वैश्विक निवेश और उपभोक्ताओं के लिए बढ़ते विकल्पों के कारण भारत का कारोबारी माहौल पहले से अधिक प्रतिस्पर्धी होने की उम्मीद है। इसके चलते उपभोक्ता खर्च में सतर्कता देखने को मिल सकती है, आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव बढ़ सकता है और पर्यावरण से जुड़े नियमों का पालन करना और भी जरूरी हो सकता है।
इन चुनौतियों के बावजूद, भारतीय व्यवसायों के लिए नए अवसर भी खुल रहे हैं। भारत का बढ़ता वैश्विक प्रभाव विदेशी निवेश को आकर्षित कर रहा है और फायदेमंद व्यापार समझौतों का रास्ता खोल रहा है। हाल ही में यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) के साथ हुए व्यापार समझौते से भारत की बढ़ती साख का अंदाजा लगाया जा सकता है। आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विटजरलैंड जैसे देश अगले 15 वर्षों में भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करने और एक मिलियन से अधिक प्रत्यक्ष रोजगार देने की योजना बना रहे हैं।
मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (PLI) योजना जैसी सरकारी पहलें, मजबूत निजी क्षेत्र, तेजी से बढ़ता आईटी उद्योग और उपभोक्ताओं की बढ़ती क्रय शक्ति, भारत को वैश्विक कंपनियों के लिए आकर्षक बनाते हैं। फिर भी, कई कंपनियाँ भारत के अलावा अन्य विकल्पों की तलाश में रहती हैं। ऐसे में बिजनेस लीडर्स के लिए जरूरी है कि वे ऐसी रणनीतियाँ अपनाएँ जो उन्हें इस बदलते कारोबारी माहौल में आगे बढ़ने में मदद करें।
बिजनेस को आगे बढ़ाने वाले कारक
डिजिटल परिवर्तन – ऐसे इनोवेशन को प्राथमिकता दें जो कामकाज को अधिक प्रभावी बनाएं और ग्राहकों को बेहतर अनुभव दें। उदाहरण के लिए, विमान इंजन बनाने वाली कंपनियां सेंसर डेटा का उपयोग कर एआई की मदद से अपने इंजनों के डिजिटल मॉडल तैयार कर रही हैं। इससे पायलटों को ईंधन की खपत कम करने के लिए वास्तविक समय में सुझाव मिलते हैं, जिससे दक्षता बढ़ती है।
आपूर्ति शृंखला – कोविड महामारी और हाल के वैश्विक संघर्षों ने सप्लाई चेन की कमजोरियों को उजागर किया है, जिनका समाधान किया जा रहा है। कंपनियों को अपनी आपूर्ति व्यवस्था को मजबूत करने, सोर्सिंग के नए विकल्प तलाशने और संचालन को स्थानीय व वैश्विक स्तर पर बेहतर बनाने की जरूरत है। इसके लिए व्यापारिक नीतियों में बदलाव या नए व्यापार समझौतों पर विचार करना पड़ सकता है। प्रौद्योगिकी इसमें अहम भूमिका निभाएगी, क्योंकि 2035 तक 45% आपूर्ति शृंखला पूरी तरह स्वचालित होने की संभावना है, जिसमें गोदामों में रोबोट और डिलीवरी के लिए ड्रोन का व्यापक उपयोग होगा।
ईएसजी (पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस) एकीकरण – कंपनियों के लिए उपभोक्ताओं और निवेशकों जैसे हितधारकों से जुड़ने के लिए ईएसजी सिद्धांतों को अपनाना जरूरी हो गया है। अप्रैल 2024 में हुए डेलॉइट और टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के सर्वे के अनुसार, 80% वैश्विक निवेशक अब सतत निवेश नीतियों का पालन कर रहे हैं। इसके अलावा, ईएसजी सिद्धांतों का पालन करने से ब्रांड की साख बढ़ती है और व्यापार को लंबे समय तक स्थायित्व मिलता है।
निरंतर सीखने की संस्कृति – यदि कर्मचारी नए कौशल नहीं सीखते या खुद को समय के अनुसार विकसित नहीं करते, तो यह किसी भी व्यवसाय के लिए नुकसानदायक हो सकता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 1.3 करोड़ लोग वर्कफोर्स में शामिल होते हैं, लेकिन उनमें से केवल एक चौथाई प्रबंधन विशेषज्ञ, पांचवां हिस्सा इंजीनियर और दसवां हिस्सा स्नातक ही रोजगार के योग्य होते हैं। यह बताता है कि व्यवसायों को अपनी सफलता सुनिश्चित करने के लिए

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