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रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: राज्यों के पास मुफ्त सुविधाओं के लिए पैसा हैं, जजों की सैलरी और पेंशन के लिए नहीं

Supreme Court: देश में बढ़ते रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं के वादों की आलोचना की है।

नई दिल्लीJan 08, 2025 / 03:09 pm

Shaitan Prajapat

High Court
Supreme Court: देश में बढ़ते रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं के वादों की आलोचना की है। मंगलवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यों के पास फ्रीबीज यानी मुफ्त सौगातों के लिए पैसा है, लेकिन जजों को सैलरी देने के लिए फंड की कमी हो जाती है। यह टिप्पणी देश में रेवड़ी कल्चर के नाम पर राजनीतिक बहस को और तेज कर सकती है।

रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उस समय आई है जब कई राजनीतिक दल चुनावों में जनता को आकर्षित करने के लिए मुफ्त योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। हालांकि, कोर्ट ने इसे एक गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा कि इस तरह की घोषणाओं से अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। कोर्ट का कहना है कि जनता के कल्याण के नाम पर किए गए इन वादों की निगरानी और नियंत्रण जरूरी है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इनसे देश की आर्थिक स्थिति पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े।

जजों की सैलरी और पेंशन के लिए वित्तीय संकट का बहाना

सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त सुविधाओं (फ्रीबीज) पर गंभीर टिप्पणी करते हुए राज्य सरकारों की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाया। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, राज्यों के पास मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के लिए पैसा है, लेकिन जजों की सैलरी और पेंशन के लिए नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकारें उन लोगों के लिए पैसा खर्च कर रही हैं, जो कुछ नहीं करते, लेकिन जब न्यायिक अधिकारियों की सैलरी और पेंशन की बात आती है तो वित्तीय संकट का बहाना किया जाता है।
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न्यायिक अधिकारियों को मिलना अनिवार्य उचित वेतन और लाभ

यह टिप्पणी उस समय आई जब अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने दलील दी कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभ तय करते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसकी कार्यक्षमता बनाए रखने के लिए न्यायिक अधिकारियों को उचित वेतन और लाभ मिलना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने फ्रीबीज और वित्तीय प्राथमिकताओं पर बहस को और तेज कर दिया है।

चुनाव आते ही रेवड़ियों झड़ी

पीठ ने टिप्पणी में कहा है कि राज्यों के पास उन लोगों के लिए सारा पैसा है जो कोई काम नहीं करते हैं। चुनाव आते ही आप लाड़ली बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं, जिसमें आप निश्चित राशि का भुगतान करते हैं। दिल्ली में हमारे पास अब किसी न किसी पार्टी की ओर से घोषणाएं हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो वे 2500 रुपये का भुगतान करेंगे। वेंकटरमानी ने कहा कि वित्तीय बोझ की वास्तविक चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

रिटायर्ड जजों को मिल रही है 10 से 15 हजार की पेंशन

यह टिप्पणी उस समय की गई जब शीर्ष अदालत सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को पेंशन के संबंध में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा 2015 में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि यह दयनीय है कि कुछ रिटायर्ड हाईकोर्ट जजों को 10,000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच पेंशन मिल रही है।

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