Sarpanch Pati : सरपंच पति की अब नहीं चलेगी ‘पंचायती’, जुर्माना और गंभीर दंड लगाने की हो रही तैयारी
Sarpanch: पंचायत मंत्रालय सरपंच चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम स्कूल स्तर की शिक्षा अनिवार्य करने पर भी विचार कर रहा है। देश में पंचायती राज संस्थाओं के तीन स्तरों में 15.03 लाख महिला जनप्रतिनिधि हैं। पढ़िए पत्रिका के रिपोर्टर शादाब अहमद की रिपोर्ट।
Fine on Sarpanch Pati: पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण (Women Reservation in Panchyati Raj) तो दे दिया गया पर निर्वाचन के बावजूद ज्यादातर मामलों में उनके पति या अन्य परिजनों ने उन्हें वह जगह और जिम्मेदारी लेने नहीं देते हैं जिसकी वे हकदार थीं। ऐसा करना अब जनप्रतिनिधि महिलाओं के पति या परिजनों को भारी पड़ सकता है। पंचायत मंत्रालय पंचायती राज की तीनों संस्थाओं में महिला प्रतिनिधि के कामकाज में उनके पति के दखल को अपराध की श्रेणी में लाकर गंभीर दंड और जुर्माने की तैयारी में जुटा हुआ है। इसी तरह पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के लिए सभी श्रेणियों में न्यूनतम स्कूल स्तर की शिक्षा अनिवार्य करने पर भी विचार किया जा रहा है।
दरअसल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं में महिला प्रतिनिधि या मुखिया के कामकाज को उनके परिवार के पुरुष संभालते हैं। ऐसे हालात को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के 6 जुलाई 2023 के आदेश पर पंचायती राज मंत्रालय ने पूर्व खान सचिव सुशील कुमार की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति का गठन किया था। हाल ही समिति ने पंचायती राज मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी है।
सलाहकार समिति ने माना है कि पंचायती राज की तीन स्तरों की संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण तो दिया गया, पर अभी भी पितृसत्तात्मक मानदंडों का प्रचलन, कानूनी सुरक्षा उपाय सीमित होने और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के चलते महिलाओं को पूर्ण अधिकार नहीं मिला है। समिति ने गहन जांच कर ‘पंचायती राज प्रणालियों और संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और उनकी भूमिकाओं में परिवर्तन: प्रॉक्सी भागीदारी के प्रयासों को समाप्त करना’ नामक रिपोर्ट तैयार की है। इसमें कई सिफारिशें की गई हैं। मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को मंजूर कर लिया है। अब सरकार के स्तर पर इस पर निर्णय किया जाएगा।
इन 14 राज्यों की भागीदारी
समिति की चार कार्यशालाएं हुई हैं। इनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम की भागीदारी रही है।
ये हैं समिति की खास सिफारिशें
महिला प्रतिनिधि के स्थान पर पुरुष हस्तक्षेप पर प्रतिबंध लगाने वाले आदेशों का उल्लंघन करने पर अपराधियों पर जुर्माना और गंभीर दंड।
पंचायती राज के सभी स्तरों पर प्रशासन को महिला प्रतिनिधि से जुड़ना चाहिए न कि उनके प्रॉक्सी (पुरुष रिश्तेदारों) के साथ।
3.पंचायत अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम स्कूल स्तर की शिक्षा अनिवार्य की जानी चाहिए, चाहे वह किसी भी लिंग का हो।
उन महिला नेताओं की सफलता की कहानियों का विशेष उल्लेख करें जिन्होंने सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी है।
पश्चिम बंगाल की तरह वीडियो रिकॉर्डिंग और मिनट्स और निर्णयों को सार्वजनिक करने सहित महिला/ग्राम सभाओं में भागीदारी।
केरल की तरह वार्ड-स्तरीय समितियों में लिंग-विशिष्ट कोटा जैसी पहल। प्रधान पति विरोधी प्रतियोगिता, महिला लोकपाल की नियुक्ति, ग्राम सभा में महिला प्रधानों का सार्वजनिक शपथ ग्रहण, महिला पंचायत नेताओं का संघ बनाने जैसे उपाय।
प्रॉक्सी नेतृत्व के बारे में गोपनीय शिकायतों के लिए हेल्पलाइन, महिला निगरानी समिति की प्रणालियां, सत्यापित मामलों में मुखबिर को पुरस्कार।
21 राज्यों और 2 संघ राज्य क्षेत्रों में महिला आरक्षण
73वें संविधान (संशोधन) अधिनियम 1992 ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया। फिलहाल 21 राज्यों और 2 संघ राज्य क्षेत्रों ने इस प्रावधान का विस्तार किया है। कुछ राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक बढ़ाई गई है।
फैक्ट फाइल
-2.63 लाख पंचायती राज संस्थाएं, सभी तीन स्तरों में -32.29 लाख कुल निर्वाचित प्रतिनिधि -15.03 लाख कुल महिला जनप्रतिनिधि -46.6 फीसदी निर्वाचित महिला प्रतिनिधि
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