संविधान बहुमत की इच्छा से नहीं, मूल मूल्यों से चले
अगले माह देश के प्रधान न्यायाधीश बनने वाले जस्टिस गवई डॉ. आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र (डीएआईसी) की ओर से आयोजित प्रथम डॉ. आंबेडकर स्मारक व्याख्यान में बोल रहे थे। उन्होंने डॉ.आंबेडकर के हवाले से कहा कि बदलती जरूरतों के अनुरूप प्रावधान करना आवश्यक है, फिर भी संविधान में बहुमत की इच्छानुसार संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती।
संविधान न्याय और समानता का प्रतीक
जस्टिस गवई ने कहा कि बाबा साहेब समाज के विकास को महिलाओं के साथ व्यवहार के आधार पर देखते थे। वे कहते थे कि इस देश में महिलाएं दलितों से भी अधिक प्रताड़ित हैं इसलिए उनका उत्थान भी एक बुनियादी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि देश में महिला प्रधानमंत्री रही हैं और अजा-जजा-ओबीसी वर्ग के सैकड़ाें अधिकारी हैं। आंबेडकर और संविधान की वजह से मैं खुद यहां
देश में दलित चीफ जस्टिस केजी. बालाकृष्णन रहे हैं और अभी ऐसे प्रधानमंत्री मिले हैं जो पिछड़े वर्ग की साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं और यह कहने में गर्व महसूस करते हैं कि देश के संविधान के कारण पीएम बने। जस्टिस गवई ने कहा कि वह खुद भी केवल डॉ. आंबेडकर और संविधान की वजह से यहां हैं।
उन्होंने अन्य नेताओं और विचारकों का भी उल्लेख किया, जैसे कि दो राष्ट्रपति- के आर नारायणन और राम नाथ कोविंद जो अनुसूचित जाति से थे। इसके अलावा देश की दो महिला राष्ट्रपति- प्रतिभा पाटिल और द्रौपदी मुर्मू भी अनुसूचित जनजाति वर्ग से है। डॉ अंबेडकर की दूरदर्शिता की सराहना करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि देश तमाम आंतरिक और बाहरी चुनौतियों के बावजूद एकजुट बना हुआ है। 17 दिसंबर 1946, 4 नवंबर 1948 और 25 नवंबर 1949 को दिए गए उनके भाषणों का जिक्र करते हुए जस्टिस गवई ने अंबेडकर को ‘महान दूरदर्शी’ बताया।