scriptInternational Women Day: 26 साल तक सैनिटरी पैड का नहीं सुना था नाम, अब कहलाती है Pad Women of India | International Women's Day: Motivational story of India's first pad woman Maya Vishwakarma | Patrika News
राष्ट्रीय

International Women Day: 26 साल तक सैनिटरी पैड का नहीं सुना था नाम, अब कहलाती है Pad Women of India

International Women Day: माया विश्वकर्मा को भारत की पैड वुमेन कहते हैं। माया विश्वकर्मा को पैड जीजी के नाम भी जानते है। वह निर्विरोध सरपंच भी चुनी गई थी।

भारतMar 08, 2025 / 07:04 am

Ashib Khan

भारत की पहली पैड वुमेन माया विश्वकर्मा

भारत की पहली पैड वुमेन माया विश्वकर्मा

Pad Women of India: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को विशेष रूप से समर्पित किया गया है। इस दिन महिलाओं के अधिकारों के लिए जागरूकता बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को लेकर पत्रिका डॉटकॉम के नेशनल टीम के आशिब खान ने भारत की पैड वुमेन (First Pad Women of India) कही जाने वाली माया विश्वकर्मा (Maya Vishwakarma) से बात की। माया विश्वकर्मा मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेहरागांव गांव की मूल निवासी है। माया विश्वकर्मा निर्विरोध सरपंच चुनी गई। माया विश्वकर्मा को पैड जीजी के नाम भी जाना जाता है। वह महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर काफी सक्रिय रहती हैं। इस समय वह सेंट लूसिया के दौरे पर हैं और अपने व्यस्ततम दौरे से समय निकाल कर इंटरव्यू दिया। आप भी पढ़े कि एक ग्रामीण और अतिसाधारण बैकग्राउंड से नाता रखने वाली लड़की कैसे पैड वूमन बनीं।

सुकर्मा फाउंडेशन की हैं संस्थापक

माया विश्वकर्मा ने अमेरिका में अपनी नौकरी छोड़कर भारत में सुकर्मा फाउंडेशन की स्थापना की। सुकर्मा फाउंडेशन के माध्यम से वे ग्रामीण महिलाओं को सस्ते सैनिटरी पैड उपलब्ध कराती हैं। उन्होंने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में रिसर्च कार्य किया। बाद में अमेरिका में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को से ब्लड कैंसर पर रिसर्च किया और 2008 में पीएचडी पूरी की। 
माया विश्वकर्मा ने इंटव्यू ने के दौरान अपने अनुभव शेयर किए और बताया कि उन्होंने लड़कियों और बालिकाओं को पैड के बारे में कैसे जागरूक किया….

सवाल- आपने 26 साल की उम्र तक पैड का नाम तक नहीं सुना था, अब आप पैड वुमन ऑफ इंडिया बन गई? कैसे यह सिलसिला शुरू हुआ था? 
माया विश्वकर्मा- मैंने 26 साल की उम्र तक पैड का नाम नहीं सुना था और उसका उपयोग भी नहीं किया था।  उस समय मैं दिल्ली में रिसर्च करती थी। मैं हमेशा कपड़े का उपयोग करती थी। इसके कारण ही मुझे बहुत समस्याएं और इंफेक्शन भी हुए। यही बात मेरे अंदर तक घुस गई कि मेरे जैसी लड़कियां जो पढ़ी-लिखी और सक्षम है। पैसे भी है। लेकिन इतनी अज्ञानता क्यों है कि हम पैड नहीं ले पाते, हम हमेशा बचत की सोचते है, कहीं ना कहीं ये शिक्षा और अवेयरनेस से भी संबंधित था। तो मैंने अमेरिका जाते-जाते सोचना, काम करना और उसका समाधान निकालना शुरू किया। इसलिए हमने सुकर्मा फाउंडेशन बनाया। सुकर्मा में हमने ‘नो टेंशन’ नाम का सैनिटरी पैड बनाना शुरू किया। वहां स्थानीय महिलाओं को नौकरी दी और उनको पैड बनाना सिखाया। फिर जागरूकता अभियान शुरू किए। जागरूक अभियान के तहत मध्यप्रदेश के करीब 15-16 जिले जो आदिवासी है वहां भी जा चुकी हूं। 
सवाल- आपने अमेरिका में अच्छी खासी नौकरी करते थे लेकिन सब छोड़कर भारत क्यों आ गए? 

माया विश्वकर्मा- अमेरिका में काम करते हुए मुझे लगा कि यहां अच्छी संपदा है, पढ़ाई लिखाई करके नौकरी करती है। भारतीय यहां पर खूब सारा पैसा कमाते है। जब मैं अपने गांव जाती थी तो मैंने देखा कि आज भी उतना ही पिछड़ा है, वहां पर स्कूल अच्छे नहीं है, पानी-बिजली नहीं है और महिलाओं की समस्याएं बढ़ती जा रही है। उस समय लगा कि हम तो अमेरिका आ जाएंगे अच्छे से नौकरी करेंगे सब-कुछ होगा, लेकिन गांव कौन देखेगा?  अमेरिका में रहते और नौकरी करते यह सवाल बार-बार मेरे जहन में आता था। मुझे लगता था कि जैसे में एक छोटे से गांव से यहां तक पहुंची हूं वैसे ही मेरे गांव और जिले की लड़कियां भी यहां तक पहुंचे। मैंने एम्स में ज्यादा समय बिताया है, वहां पर डॉक्टरों के बीच रिसर्च में मेडिकल से ज्यादा लगाव था। मेरे क्षेत्र में महिलाओं में हाइजीन और पीरियड की समस्या थी। इन समस्याओं के बारे में आज से 10 साल पहले हमारे यहां कोई बात नहीं करता था। तो मुझे लगा कि क्यों ना इस समस्या पर काम किया जाए, इसके बाद मैंने इस पर रिसर्च करना शुरू किया। पैडमैन अरुणाचलम मुरुगनाथम का शुरुआत में मुझे मार्गदर्शन भी मिला। हमने सुकर्मा फाउंडेशन की स्थापना की। 2016 में भारत में सुकर्मा फाउंडेशन की स्थापना की और पैड पर काम करना शुरू किया। 
सवाल- आप ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं, वहां की लड़कियां अभी तक पीरिएड में कपड़ा या बोरे जैसी चीजों का इस्तेमाल करती हैं। आपने जब काम शुरू किया तो गांव की लड़कियों को समझाने में किस तरह की परेशानी आती थी?
माया विश्वकर्मा- यह बात सही है, ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों को समझाने में परेशानी आती थी। लड़कियां पीरियड के समय कपड़े का उपयोग करती थी और एक ही कपड़े को कई बार यूज करती थी। उनको समस्या होती थी कि एक ही कपड़े को सुखाने के लिए धूप नहीं मिलना। इसलिए हमने सोचा कि इनको हम कैसे बताएं और हमने सोचा कि लड़कियों को हम वैज्ञानिक पद्धति जोड़ते हुए बताएं जिससे ये प्रथाएं अलग हो जाए। इसके बाद हमने लड़कियों को पैड़ के बारे में बताना शुरू किया। वैज्ञानिक तथ्यों से लड़कियों को समझाकर हमने इसका समाधान निकाला। 
सवाल- आप निर्विरोध सरपंच चुने गए। आप अपने पंचायत में लड़कियों और महिलाओं के लिए क्या- कर रहे हैं?

माया विश्वकर्मा- हमारी पिंक पंचायत है। मेरा एक मात्र उद्देश्य सरपंच बनने का यही है कि मैं अपने गांव में एक बहुत अच्छा स्कूल बनाना चाहती हूं, जो बहुत मोर्डन हो और सभी लड़कियां कम से कम 12 वीं तक बिना रुकावट निशुल्क पढ़ें। मैंने महिलाओं की समस्याओं का समाधान सोचना शुरू किया तो हम पैड पर काम करते है इसलिए हमारे गांव की 6वीं से 12वीं कक्षा की बालिकाओं को निशुल्क पैड मिलते है। इसके अलावा पैड को नष्ट करने के लिए गांव में एक मशीन भी लगवाई है। समय-समय पर लड़कियों और महिलाओं से बातचीत की जाती है और उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली जाती है। 
सवाल- आपका फाउंडेशन सुकर्मा किन-किन विषयों पर काम करता है?

माया विश्वकर्मा- सुकर्मा फाउंडेशन की शुरुआत सैनिटरी पैड से हुई थी। ‘नो टेंशन’ नाम का सैनिटरी पैड बनाते है और उसको सस्ते दाम पर वितरित करते है। इसके अलावा हमने हेल्थ की समस्या पर काम करते एक छोटा सा पीएचसी शुरू किया। यह पीएचसी कोविड से पहले शुरू किया तो इसमें कोविड के समय मरीजों का इलाज भी हुआ। हमने एक सेंटर खोला, जिसमें बच्चे, महिलाओं और सभी को कंप्यूटर की बेशिक शिक्षा देते है। उसी के साथ-साथ महिलाओं को सिलाई भी सिखाई जाती है जिससे वे आत्मनिर्भर बन सके। शिक्षा, स्वास्थ्य और महावारी पर काम करना हमारा मुख्य काम है। 
सवाल- लड़कियों के लिए आप अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दो शब्द क्या कहना चाहती हो? 

माया विश्वकर्मा- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक दिन नहीं हर दिन होना चाहिए। लड़कियों और महिलाओं के प्रति अभी भी हमारे समाज का व्यवहार नहीं बदला है। तो मैं ये ही कहूंगी कि सबसे पहले आप शिक्षा अर्जित करें और खुद को समृद्ध और सशक्त बनाए, क्योंकि पढ़ाई के अलावा ऐसा कोई और विकल्प नहीं हो जो हमें जागरूक करे। जो आपका सपना है उसे अपने अंदर रखे और उसे पूरा करने की कोशिश करे। आप एक आर्दश बने ताकि लोग आपका अनुसरण कर सकें। 

Hindi News / National News / International Women Day: 26 साल तक सैनिटरी पैड का नहीं सुना था नाम, अब कहलाती है Pad Women of India

ट्रेंडिंग वीडियो