20 लाख पुलिस बल में केवल 1000 वरिष्ठ महिला अफसर
देश में पुलिस बल में वरिष्ठ महिला अफसरों की संख्या अंगुलियों पर गिन सकते हैं। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 20.3 लाख पुलिस बल में सुपरिंटेंडेंट और डीजी स्तर पर एक हजार से भी कम महिला वरिष्ठ अधिकारी कार्यरत हैं। पुलिस बल में कार्यरत कुल महिलाकर्मियों का 90 प्रतिशत हिस्सा कांस्टेबल स्तर का है। टाटा ट्रस्ट सहित कुछ संस्थाओं की ओर से तैयार इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 2025 में न्याय व्यवस्था के मोर्चे पर जारी रैंकिंग में दक्षिणी राज्य अव्वल हैं। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जहां नंबर 1 और 2 हैं, वहीं राजस्थान 14वें, मध्य प्रदेश सातवें और छत्तीसगढ़ छठे स्थान पर हैं। राजस्थान में पुलिस अफसरों के 50 प्रतिशत पद खाली हैं, हालांकि, राज्य में न्यायपालिका में सर्वाधिक सुधार हुआ है। आईजेआर में एक करोड़ से अधिक आबादी वाले 18 बड़े और मध्यम राज्यों की रैंकिंग जारी हुई है।स्टाफ की भारी कमी और सुरक्षा के अधूरे इंतजाम
कैटेगरी | साल 2023 | साल 2022 |
खाली पद | 23 प्रतिशत | 22 प्रतिशत |
महिला पुलिसकर्मी | 12.3 प्रतिशत | 11.8 प्रतिशत |
CCTV वाले थाने | 83 प्रतिशत | 73 प्रतिशत |
वुमन हेल्प डेस्क थाने | 78 प्रतिशत | 72 प्रतिशत |
पुलिस में महिलाओं की स्थिति
पुलिस बल में देश में कुल करीब 2.43 लाख महिला कर्मियों में से केवल 960 अधिकारी आईपीएस रैंक की हैं। गैर आईपीएस श्रेणी के अधिकारियों के करीब 3.10 लाख पदों में केवल 24,322 महिलाएं हैं। कांस्टेबल और हैडकांस्टेबल के 17.24 लाख पदों में से मात्र 2.17 लाख महिलाएं कार्यरत हैं।ऐसे तैयार हुई रैंकिंग
न्याय व्यवस्था से जुड़ीं चार प्रमुख संस्थाओं- पुलिस, न्यायपालिका, जेल और विधिक सहायता को छह कसौटियों पर जांचा गया। ये कसौटियां- बजट, मानव संसाधन, कार्यभार, विविधता, अधोसंरचना और रुझान रहे।मानक पूरे नहीं
रिपोर्ट के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय मानक के मुताबिक, प्रत्येक एक लाख आबादी पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए, भारत में यह संख्या केवल 120 है। अधिकारियों के 28 प्रतिशत और सिपाहियों के 21 प्रतिशत पद खाली हैं। देश में पुलिस जनसंख्या अनुपात 1:831 है।क्या कहते हैं विशेषज्ञ
आइजेआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा, न्याय प्रणाली की अग्रिम पंक्ति में पुलिस थानों, जिला अदालतों की गिनती होती हैं। इन्हें पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण न मिलने से न्याय व्यवस्था प्रभावित होती है। जिससे जनता का भरोसा टूटता है।राजस्थान:
खराब —पुलिस अफसरों के 50 प्रतिशत पद खाली—कानूनी सहायता प्रदान करने में 18 राज्यों में अंतिम स्थान
—37 प्रतिशत जेलों में वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा नहीं है, सबसे खराब स्थिति बेहतर —जिला अदालतों में केस निस्तारण दर 2016-17 के बाद पहली बार 100%
—पुलिस बल में महिलाएं 10.9 % पड़ोसी राज्यों से अधिक
18 राज्यों में प्रमुख प्रदेशों की रैंकिंग
राज्य | ओवरऑल रैंकिंग | पुलिस व्यवस्था | जेल | अदालतें | कानूनी सहायता |
राजस्थान | 14 | 16 | 8 | 6 | 18 |
मध्य प्रदेश | 7 | 11 | 5 | 9 | 9 |
छत्तीसगढ़ | 6 | 4 | 13 | 8 | 7 |
मध्य प्रदेश
खराब—जेल अधिकारियों के 43 प्रतिशत पद खाली
—पुलिस बल में एससी-एसटी-ओबीसी के पद खाली
—हाईकोर्ट में जजाें के 38 प्रतिशत पद रिक्त
—98 प्रतिशत पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे
—कानूनी सहायता बजट में 91 प्रतिशत की राज्य हिस्सेदारी सर्वाधिक
छत्तीसगढ़
खराब—जिला अदालतों में एक तिहाई पद खाली
—पैरालीगल वॉलंटियर्स की संख्या आधी हो गई है
—एक तिहाई जेलों में 150-250 प्रतिशत ज्यादा कैदी
—जिला अदालतों और हाईकोर्ट दोनों में केस क्लीयरेंस रेट 100 प्रतिशत
—सभी पुलिस थानों में महिला हेल्प डेस्क
जोड़ो डीडी लीड
ये हैं हालात आपराधिक न्याय व्यवस्था केये उजला पक्ष —83% पुलिस स्टेशनों में कम से कम 1 सीसीटीवी—78% पुलिस थानों में महिला सहायता डेस्क
—38% महिला जज हैं अधीनस्थ न्यायपालिका मे
86% जेलों में कम से कम एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा
ये निकली कमियां
पुलिस —10,000 फोरेंसिक स्टाफ के पद खाली—1.25 फीसदी ट्रेनिंग पर खर्च होता है पुलिस के कुल औसत बजट का
—0 राज्य हैं जिन्होंने पुलिस में महिलाओं का कोटा भरा
—20% से ज्यादा विचाराधीन कैदी 1-3 साल से बंद हैं 20 राज्यों/यूटी की जेलाें में
—25 मनोचिकित्सक हैं 5.7 लाख कैदियों के लिए, 25 राज्यों में पद ही नहीं
कानूनी सहायता और न्यायपालिका
—38% वोलंटियर्स कम हुआ 2019 के बाद—4% केस ही मानवाधिकार आयोगों में स्वत: संज्ञान के
—केवल कर्नाटक में न्यायपालिका और पुलिस में एससी-एसटी-ओबीसी का कोटा पूरा