नागौर. विश्व पृथ्वी दिवस पर मंगलवार को माडीबाई मिर्धा राजकीय कन्या महाविद्यालय में राजस्थान पत्रिका व कन्या महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता पद्मश्री हिम्मतारामभांभू ने कहा कि हम विकास की अंधी दौड़ में पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लेकिन समय रहते नहीं चेते तो परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने कहा कि वे सुबह उठने पर सबसे पहले धरती को प्रणाम करते हैं। उन्होंने भगवान का अर्थ बताते हुए कहा कि भूमि, गगन, वायु, अग्नि व नीर से यह शब्द बना है। भगवान के साक्षात अवतार इन पांच महाभूतों में सारा ब्रह्माण्ड समाया है, इसलिए इनका संरक्षण ही भगवान की पूजा है और इसलिए हम कहते हैं कि कण-कण में भगवान है।
विचार गोष्ठी को संबोधित करते पद्मश्री हिम्मताराम भांभू पद्मश्री ने कहा कि हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने के साथ गोचर, ओरण, पायतन, नाडी, तालाब आदि को बचाना होगा, तभी पृथ्वी बचेगी। उन्होंने कहा कि पिछले 50-60 सालों में जो परिवर्तन हुआ है, वो अविश्वसनीय है। इंसान ने ऐसी-ऐसी मशीनें बना दी, जो विनाश कर रही हैं, पेड़-जंगल काट रहे हैं। हालांकि कोरोना महामारी ने इंसान को सबक सिखाया, जिसके बाद पर्यावरण को बचाने के प्रति लोगों में जागरुकता आई है, लेकिन अभी और सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यदि हम नहीं चेते तो तापमान 56 डिग्री तक जा सकता है, सारे काम दिन की बजाय रात में करने होंगे। पर्यावरण प्रेमी सुखराम चौधरी ने कहा कि दुनिया में हर चीज बढ़ रही है, लेकिन पृथ्वी एक इंच भी नहीं बढ़ रही, इसलिए इसे बचाना जरूरी है, तभी जीवन बचेगा।
विचार गोष्ठी को संबोधित करते डॉ. प्रेमसिंह बुगासराछोटे स्तर पर करने होंगे प्रयास बीआर मिर्धा कॉलेज के एनसीसी प्रभारी डॉ. प्रेमसिंह बुगासरा ने कहा कि पृथ्वी को बचाने के लिए हम सब को मिलकर प्रयास करने होंगे। तापमान लगातार बढ रहा है। इसे रोका नहीं गया तो जीवन संकट में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि कार्बन उत्सर्जन की समस्या का समाधान जरूरी है, यह हमारी जिम्मेदारी है। इसके लिए हमें छोटे-छोटे स्तर पर प्रयास करने होंगे, तभी बड़े परिणाम आएंगे।
विचार गोष्ठी को संबोधित करते प्राचार्य हरसुखराम छरंगसिर सांटेरूंख रहे तो भी सस्तो जाण मिर्धा व महिला कॉलेज के प्राचार्य डाॅ. हरसुखराम छरंग ने गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि हमारे पूर्वज पृथ्वी को बचाने की मुहिम सदियों से चला रहे हैं। ने खेजड़ली में पर्यावरण प्रेमियों ने पेड़ों को बचाने के लिए सिर कटवा लिए थे, इसलिए यह कहा गया कि ‘सिरसांटेरूंख रहे तो भी सस्तो जाण’। यानी यदि पेड़ को बचाने के लिए अपना सिर भी कटवाना पड़े तो भी यह सस्ता सौदा है। उन्होंने कहा कि विकास को नियोजित तरीके से नहीं किया तो विनाश की तरफ बढ जाएंगे। तापमान बढ रहा है, इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। गोष्ठी का संचालन सहायक आचार्य हिमानी पारीक ने किया। इस दौरान सहायक आचार्य माया जाखड़, सपना मीणा, कविता भाटी, अनुराधा छंगाणी व कैलाश धींवा सहित छात्राएं मौजूद रहीं।
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