वहीँ, मुंबई के बांद्रा स्थित ठाकरे निवास ‘मातोश्री’ में एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई, जिसमें राज ठाकरे के चचेरे भाई और बालासाहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे (44) ने मीडिया से बात की। उन्होंने कहा, “राज का फैसला एक गलतफहमी का नतीजा है। उन्होंने 27 नवंबर 2005 को बगावत की थी, लेकिन हमें उम्मीद थी कि यह मतभेद आपसी सहमति से सुलझ जाएंगे। लेकिन 15 दिसंबर को बालासाहेब ठाकरे से मिलने के बाद भी वह अपने फैसले पर अडिग रहे।”
तब 44 वर्षीय उद्धव ने कहा था कि राज ठाकरे के शिवसेना से अलग होने के फैसले से बालासाहेब बेहद आहत हुए है। हालांकि, तेजतर्रार शिवसेना प्रमुख ने तब इस मुद्दे पर मीडिया से कोई बात नहीं की थी।
सूबे के राजनीतिक गलियारों में उस समय यह एक बड़ा सियासी भूचाल बनकर आया था, और अब करीब 20 साल बाद वही भूचाल दोबारा आने के संकेत मिल रहे है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे जो बीते दो दशक से राजनीतिक रूप से अलग रास्तों पर हैं, वह अब एक बार फिर एक साथ आने की ओर बढ़ रहे हैं। जिस वजह से महाराष्ट्र की सियासत में हलचल बढ़ गई है।
शिवसेना से अलग होकर मनसे (Maharashtra Navnirman Sena) की स्थापना करने वाले राज ठाकरे ने 2009 के विधानसभा चुनाव में 13 सीटें जीतकर सूबे की सियासत में अपना दमखम दिखा दिया था। लेकिन इसके बाद पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता गया। 2014 और 2019 के चुनावों में मनसे केवल एक सीट पर सिमट गई, जबकि पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में मनसे का खाता भी नहीं खुल पाया। यहां तक की बीजेपी का समर्थन मिलने के बाद भी पहली बार चुनाव लड़ रहे राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे बुरी तरह चुनाव हार गए।
दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे को 2022 में तब बड़ा झटका लगा, जब कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे की बगावत से उनकी महाविकास आघाडी (MVA) सरकार गिर गई और शिवसेना दो हिस्सों में बंट गई। बाद में चुनाव आयोग ने पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न भी शिंदे गुट को दे दिया। हालांकि उद्धव की नई पार्टी शिवसेना (UBT) ने पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में 9 सीटें जीतकर वापसी की, लेकिन उसके चंद महीने बाद हुए विधानसभा चुनावों में केवल 20 सीटें ही जीत सकी। जबकि राज्यभर में कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) के साथ गठबंधन में कुल 92 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उधर, कट्टर प्रतिद्वंद्वी एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 57 सीटों पर जीत हासिल की।
ऐसे शुरू हुई ठाकरे भाईयों के साथ आने की पहल
हाल ही में एक पॉडकास्ट में राज ठाकरे ने कहा, “मेरे और उद्धव के झगड़े छोटे हैं। महाराष्ट्र इन सबसे बड़ा है। इन मतभेदों की कीमत महाराष्ट्र और मराठी लोगों को चुकानी पड़ रही है। साथ आना मुश्किल नहीं है, यह केवल इच्छा का विषय है। यह सिर्फ मेरी इच्छा या स्वार्थ की बात नहीं है।” उद्धव ठाकरे ने भी इस पर सकारात्मक रुख दिखाया, लेकिन एक शर्त जोड़ दी। उन्होंने कहा, “मैं छोटे-मोटे मतभेद भुलाने को तैयार हूं, लेकिन यह बार-बार पक्ष बदलने का खेल नहीं चलेगा। एक दिन समर्थन, दूसरे दिन विरोध और फिर समझौता यह सब नहीं चलेगा। जो कोई भी महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करेगा, उसे मैं न अपने घर बुलाऊंगा, न उसके साथ बैठूंगा, और न ही उसका स्वागत करूंगा। यह बात पहले स्पष्ट होनी चाहिए।”
अभी गठबंधन नहीं हुआ
इस बीच, राज्यसभा सांसद और उद्धव ठाकरे के करीबी सहयोगी संजय राउत ने कहा, “फिलहाल मनसे से कोई गठबंधन नहीं हुआ है। अभी तो बस भावनात्मक बातचीत चल रही है। राज और उद्धव भाई हैं, दोनों मिलकर ही फैसला करेंगे।” उधर, मनसे के वरिष्ठ नेता संदीप देशपांडे ने भी कहा कि राज ठाकरे अभी बाहर गए है, जब वह वापस लौटेंगे तो इस पर अपना रुख स्पष्ट करेंगे। महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर बदलेगी?
राज ठाकरे पहले भी कह चुके हैं कि उनके मतभेद व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राजनीतिक हैं। लेकिन मौजूदा समय में जब मनसे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है, दूसरी ओर उद्धव ठाकरे को भी अपनी पकड़ मजबूत करने की जरूरत महसूस हो रही है, ऐसे में दोनों भाईयों का एक साथ आना रणनीतिक रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है।
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का मिलन अगर हकीकत बनती है, तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकती है। शिवसेना की विरासत और मराठी अस्मिता की राजनीति को फिर से मजबूत करने की कोशिश इस गठबंधन के पीछे की सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। अब देखना यह है कि क्या ठाकरे भाई अपने मतभेदों को भुलाकर महाराष्ट्र के हित का हवाला देते हुए एक साथ आ पाएंगे या फिर यह मुद्दा महज राजनीतिक हवा बनकर गायब हो जाएगा।