बैलों से खेती को मिलेगा बढ़ावा
कभी गांवों में बैलों की हुंकार और गले में बंधी घंटियों की मधुर ध्वनि खेतों में एक अलग ही माहौल बनाती थी। लेकिन समय के साथ आधुनिक मशीनों के बढ़ते उपयोग के कारण बैलों का महत्व कम होता चला गया। अब सरकार की इस पहल से बैलों के उपयोग को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे पारंपरिक खेती की ओर वापसी संभव हो सकेगी। इस योजना से छोटे किसानों को आर्थिक लाभ मिलेगा और वे रासायनिक उर्वरकों के बजाय प्राकृतिक तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे। इससे न केवल खेती की लागत में कमी आएगी, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहेगी।राजस्थान पुलिस की पहली बड़ी कार्रवाई! धमकी के बाद आत्महत्या…इस भूमाफिया की 12 करोड़ की संपत्ति फ्रीज
गोपालन को भी मिलेगा संजीवनी
विशेषज्ञों का मानना है कि इस योजना से खेती के पुराने दौर की वापसी तो होगी ही, साथ ही गोपालन को भी बढ़ावा मिलेगा। अक्सर छोटे बछड़ों को निराश्रित छोड़ दिया जाता था, लेकिन अब वे बैल बनकर किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं। इस योजना से किसानों को राहत तो मिलेगी ही, साथ ही बैलों की उपयोगिता भी बढ़ेगी। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की तर्ज पर यह प्रोत्साहन राशि छोटे किसानों के लिए बड़ा सहारा बनेगी। यह न केवल कृषि उत्पादन में सुधार करेगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ बनाएगी।गांवों में बैलों की घटती संख्या
किसानों और ग्रामीण बुजुर्गों की मानें तो पहले हर गांव में बैलों की दर्जनों जोड़ियां देखने को मिलती थी। एक किसान के बैल पूरे गांव में खेती-किसानी में सहायक होते थे। मगर अब समय बदल चुका है, और अधिकतर किसानों ने बैलों को त्याग दिया है। सिंचाई के साधनों से वंचित किसानों ने भी आधुनिक उपकरणों का सहारा लेकर बैलों की उपयोगिता को भुला दिया है। यही कारण है कि पशुधन की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। यह योजना इस समस्या का समाधान कर सकती है और बैलों के महत्व को फिर से स्थापित कर सकती है।
पशु मेलों का अस्तित्व संकट में
सांगोद सहित कई स्थानों पर बड़े पशु मेले आयोजित किए जाते थे। इन मेलों में लाखों रुपए के बैल खरीदे और बेचे जाते थे। किसान अपने बैलों को सजाकर मेले में लाते थे और व्यापारी उन्नत नस्ल के बैल खरीदकर ले जाते थे। लेकिन जब से खेतों में बैलों का उपयोग कम हुआ, पशु मेलों का अस्तित्व भी संकट में आ गया। अब इस सरकारी योजना से उम्मीद जगी है कि बैलों की मांग बढ़ेगी और पशु मेले फिर से जीवंत हो सकते हैं। इससे पारंपरिक पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा और किसानों को नई आर्थिक संभावनाएं मिलेंगी।