केस 2- 24 मार्च 2025: चाचा गांव के पास राष्ट्रीय राजमार्ग-11 किनारे आग लगी, जिससे सडक़ किनारे लगे सैकड़ों पौधे जलकर राख हो गए।
केस 3- 25 मार्च 2025: देवा माइनर की वन पट्टी में शाम को अचानक आग भडक़ गई, जिससे बहुमूल्य वनस्पति और जीव जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ गया।
जैसलमेर. राजस्थान के तपते थार में जहां जीवन अपने संघर्षों से उम्मीदें सींचता है, वहां मार्च की शुरुआत से ही दावानल की घटनाएं हरियाली पर कहर बनकर टूटी हैं। रेगिस्तान में वन क्षेत्र और नहरी पट्टियों में आग की लपटें फैलीं, जिससे न केवल पर्यावरण को क्षति हुई, बल्कि वन्य जीवों, ग्रामीणों और कृषि क्षेत्रों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे। हाल ही में करीब आधा दर्जन घटनाओं ने यह साबित किया है कि वन क्षेत्रों में दावानल अब सामान्य मौसमीय घटना बनती जा रही है।
…इसलिए भडक़ रहा हैं दावानल
गर्मी के मौसम में सूखी घास, झाडिय़ों और वनस्पतियों में आपसी घर्षण से उत्पन्न चिंगारी जंगल की आग में बदल जाती है।- खेतों में अवशेष जलाना, खुले में आग जलती छोड़ देने से गतिविधियां भीषण आग का कारण बनती हैं।
- जैसलमेर की गर्म हवाएं एक बार लगी आग को कई गुना गति से फैला देती हैं, जिससे स्थिति बेकाबू हो जाती है।
हकीकत : दमकल संसाधनों की कमी:
दूर-दराज के वन क्षेत्रों में दमकल वाहन समय पर नहीं पहुंच पाते। नहरी क्षेत्रों में तो दमकल की अनुपस्थिति हालात को और गंभीर बनाती है।राख़ हो रही प्राकृतिक सम्पदा
- आग लगने से जीवों के प्राकृतिक आवास जल जाते हैं, वे मारे जाते हैं या पलायन को मजबूर हो जाते हैं।
- वनस्पतियां और छोटे जीव आग की चपेट में आकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता है।
- आग से निकलने वाला धुआं वातावरण में हानिकारक गैसें छोड़ता है, जो ग्लोबल वार्मिंग और वायु प्रदूषण को बढ़ावा देता है।
- आग के कारण मिट्टी में मौजूद जैविक तत्व जल जाते हैं, जिससे भूमि बंजर हो सकती है।
- कई बार खेत, घर और जल स्रोत भी आग की चपेट में आ जाते हैं, जिससे आमजन का जीवन प्रभावित होता है।
समाधान और बचाव
- ग्रामीणों, किसानों और वन कर्मचारियों को दावानल से बचाव, रोकथाम और आपातकालीन उपायों की नियमित जानकारी दी जाए।
- तकनीक की सहायता से संवेदनशील क्षेत्रों की निगरानी की जाए।
- सूखी घास, झाडिय़ों और कचरे की नियमित सफाई की जाए जिससे आग लगने की संभावना कम हो।
- वन विभाग, स्थानीय प्रशासन और बचाव दलों के बीच समन्वय से संयुक्त अभ्यास कराए जाएं।
कृषि व वानिकी विषयों के जानकार एसके व्यास का कहना है कि गर्मी के मौसम में जैसलमेर जैसे मरुस्थलीय क्षेत्र में दावानल की घटनाएं स्वाभाविक हैं, लेकिन इनकी तीव्रता अब चिंताजनक स्तर पर पहुंच रही है। नहरी और वनीय क्षेत्रों में सूखी घास व झाडिय़ों में मामूली चिंगारी भी भीषण आग का रूप ले लेती है। तेज हवाएं आग को तेजी से फैलाती हैं। कई बार खेतों में लगाई गई आग या वाहन से निकली चिंगारी भी इसका कारण बनती है।
इन हालात में सबसे बड़ी चुनौती समय पर आग पर काबू पाने की होती है, क्योंकि नहरी क्षेत्रों में दमकल की उपलब्धता नहीं है और वन विभाग के पास संसाधनों की भारी कमी है।