
आस-पास के गांवों से ली मदद : स्थानीय निवासी कैलाश ने बताया कि पलायन रोकने के लिए चारागाह विकास समिति का गठन किया गया। पंचायत ने ग्रामीणों के साथ बैठक की। जिसमें वर्षा के जल को संग्रहित और पलायन रोकने पर चर्चा की। इसके लिए गांवों से एक निजी संस्था फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी और मनरेगा की मदद ली। मृदा नमी संरक्षण परियोजना के तहत ग्रामीणों ने पानी स्टोर करने के लिए एनिकट बनवाए। गांव में पौधे लगाए। नाड़ी, चेक डैम, समोच्च बांध का निर्माण और पुराने तालाब या एनिकट की मरम्मत की। इसके लिए एफईएस ने आठ लाख रुपए खर्च किए साथ ही गांव वालों ने भी श्रमदान के साथ आर्थिक सहायता की।
ग्रामीणों ने दिया आर्थिक सहयोग, पानी संग्रहण के लिए बनाए स्ट्रक्चर

वॉटर स्टोर करने के लिए स्ट्रक्चर बनाए गए, जिसे बनाने में मशीनी उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसके लिए “फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी” संस्था ने पलायन कर रहे लोगों को शहर जितने वेतन पर काम देना शुरू किया। जितने पैसे वो शहर में कमा रहे थे, वो अब उन्हें गांव में मिलने लग गए। इससे पलायन रुकने के साथ ही गांव में ही रोजगार मिला और धीरे-धीरे वे फिर से खेती की तरफ बढ़ने लगे।