2016 के बाद वर्ष 2020-21 में दूसरी बार इसका टेंडर करने की प्रक्रिया शुरू हुई। लेकिन तब इसे कोविड के नाम पर रोक दिया। 2021-22 में दूसरी बार तीन वर्ष के लिए करीब 167 करोड़ रुपये में उसी कंपनी को यह ठेका फिर से दे दिया गया। अब तीसरी बार फिर तीन वर्ष के लिए निविदा प्रक्रिया में दो कंपनियां शामिल की गईं। इनमें एक पहले वाली किर्लोस्कर और दूसरी साइरिक्स है। लेकिन अब योजना का बजट 100 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 300 करोड़ रुपये से अधिक कर दिया गया।
दोनों कंपनियों को अब आधा-आधा राजस्थान संभालना होगा। व्यवस्था को जोन ए और बी में बांटकर अलग-अलग जिले दिए जा रहे हैं। इस योजना के तहत शुरूआती पांच वर्ष तो मेडिकल कॉलेज शामिल ही नहीं थे। जबकि राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर के मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में ही सर्वाधिक जांच सुविधाएं हैं और मरीजों का सर्वाधिक दबाव भी इन्हीं अस्पतालों पर रहता है।
ऑफलाइन भी ठीक हुई मशीनें!
ई उपकरण योजना की शुरूआत में जांच मशीनें ठीक करने का समय तय किया गया। तय अवधि में ठीक नहीं कर पाने पर पेनल्टी का प्रावधान रखा गया। यह पेनल्टी ई सॉप्टवेयर के माध्यम से मशीन खराब होने की सूचना आने और तय समय पर ठीक नहीं होने पर स्वत: ही लगाए जाने का प्रावधान था। लेकिन सूत्रो के अनुसार ऑफलाइन भी सूचनाएं दी जाती रहीं।
95 प्रतिशत कम किया मशीनें ठीक करने का समय: आरएमएससीएल
राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन के अधिकारियों का कहना है कि उक्त निविदा का निविदा मूल्य 201.95 करोड़ रुपये और जीएसटी है। मशीनें ठीक करने की अवधि भी 95% तक कम की गई है। पहले उपकरणों की वैल्यू करीब एक हजार करोड़ रुपये थी। जो अब बढ़कर 1600 करोड़ रुपये हो गई है। इसके साथ ही दर भी 3.5 से 6 प्रतिशत हुई है।
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करोड़ों रुपये का बजट रखरखाव के लिए दिए जाने के बावजूद बड़े अस्पतालों में भी बायो इंजीनियर नहीं रखे गए। जिससे की जांच मशीनें तत्काल ठीक की जा सके। जबकि उक्त सभी प्रावधान बड़े बजट वाली इस योजना में पहले टेंडर के साथ ही किए जाने चाहिए थे।