इस रोग के लक्षण
गर्दन में दर्द व तनाव रहना, कंधे या हाथ और अंगुलियों में सूनापन या झनझनाहट होना। पैरों में भारीपन, चलने में तकलीफ, हाथ-पैरों में कमजोरी, पेशाब करने में तकलीफ, सिरदर्द, चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा छाना, कंधे व हाथ की अंगुलियों में दर्द।
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ये भी हैं वजह
गर्दन में चोट लगना या ऐसा काम करना, जिससे गर्दन पर दबाव आए जैसे सिर पर वजन उठाने से यह बीमारी हो सकती है।

इलाज एवं जांच
गर्दन का एक्स-रे, सीटी स्केन व एमआरआई की जाती है। हाथ व पैर की ईएमजी/ एनसीवी की जांच होती है।
दवा-व्यायाम: ज्यादा दर्द होने पर कुछ दिन तक गर्दन को आराम देने की जरूरत होती है। इसके लिए गर्दन का पट्टा(सर्वाइकल कॉलर) दिया जाता है और दर्द निवारक दवाओं से कुछ दिनों में आराम मिल सकता है, बशर्ते मरीज बाद में भी नियमित चेकअप कराए और सावधानियों का पालन करे। दर्द ठीक होने के बाद मरीज को गर्दन का नियमित व्यायाम करना चाहिए।
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ऑपरेशन: वे मरीज जिन्हें आराम करने या दवा लेने से भी फायदा नहीं मिलता, उनमें गर्दन का साधारण ऑपरेशन कर मरीज की तकलीफ को कम या दूर किया जाता है। ऑपरेशन में जो भाग नर्व या स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव डाल रहा होता है, उसे माइक्रोस्कोप एवं माईक्रोड्रिल की मदद से निकाल कर टाइटेनियम इम्प्लांट लगा दिया जाता हैं। टाइटेनियम इम्प्लांट शरीर में रिएक्शन नहीं करता तथा एमआरआई कम्पैटिबल होता है।
रखें ध्यान
न्यूरोसर्जन डॉ.रशिम कटारिया ने बताया कि कम्प्यूटर के सामने हमेशा सही मुद्रा में बैठें, ना कि गर्दन झुकाकर। कंप्यूटर स्क्रीन आंखों की सीध में होनी चाहिए। हमेशा सोते समय तकिए का प्रयोग करना चाहिए और ध्यान रखें कि वह ना ज्यादा बड़ा हो, ना अधिक पतला और ना ही बहुत ज्यादा सख्त हो।
डिसक्लेमरः इस लेख में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल रोगों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति जागरूकता लाना है। यह किसी क्वालीफाइड मेडिकल ऑपिनियन का विकल्प नहीं है। इसलिए पाठकों को सलाह दी जाती है कि वह कोई भी दवा, उपचार या नुस्खे को अपनी मर्जी से ना आजमाएं बल्कि इस बारे में उस चिकित्सा पैथी से संबंधित एक्सपर्ट या डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।