इंटरनेशनल मार्केट में सस्ता हुआ पेट्रोल-डीजल, लेकिन भारत में नहीं घटे दाम, जानें वजह
Petrol-Diesel Crude Oil: अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की किमतों में कमी आई है, लेकिन भारत में पेट्रोल-डीजल पर ₹2/लीटर बढ़ा उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया है; जिसके चलते आम जनता तक राहत नहीं पहुंच सकी है।
Petrol-Diesel Crude Oil: वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट ने सुर्खियां बटोरी हैं, लेकिन भारतीय उपभोक्ताओं के लिए यह राहत की खबर अभी तक हकीकत में नहीं बदली है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल कई साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है, फिर भी भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई कमी नहीं आई है। आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? आइए, इसकी पड़ताल करते हैं।
सोमवार, 7 अप्रैल 2025 को ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 4% गिरकर 63 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गई, जो 2021 के बाद का सबसे निचला स्तर है। इसी तरह, वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड भी चार साल में पहली बार 60 डॉलर के स्तर को तोड़ते हुए 59.79 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। अप्रैल महीने में क्रूड की कीमतों में 11% से 16% तक की गिरावट दर्ज की गई है। इसका कारण सऊदी अरब की कीमतों में कटौती की रणनीति, ट्रंप प्रशासन के टैरिफ से जुड़ी चिंताएं, और वैश्विक मांग में कमी की आशंकाएं हैं। नीचे दी गई तालिका अप्रैल में क्रूड की कीमतों के उतार-चढ़ाव को दर्शाती है:
तिथि
भाव (डॉलर प्रति बैरल)
1 अप्रैल
74.98
2 अप्रैल
75.30
3 अप्रैल
70.77
4 अप्रैल
65.58
7 अप्रैल
62.90
इस गिरावट के पीछे वैश्विक आर्थिक मंदी का डर और ट्रेड वॉर का बढ़ता तनाव प्रमुख कारण हैं। सऊदी अरब ने तेल उत्पादन बढ़ाने और कीमतें कम करने की रणनीति अपनाई, जिससे बाजार में आपूर्ति बढ़ गई और कीमतें नीचे आईं।
भारत में क्यों नहीं सस्ता हुआ पेट्रोल-डीजल?
जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड सस्ता हो रहा है, तो स्वाभाविक सवाल उठता है कि भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें क्यों नहीं घट रही हैं। इसका जवाब कई कारकों में छिपा है। सबसे बड़ी वजह भारतीय रुपये का कमजोर होना है। सोमवार को रुपया 61 पैसे की गिरावट के साथ 85.84 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो शुक्रवार को 85.23 पर था। मिरे एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी के मुताबिक, ग्लोबल ट्रेड वॉर और मजबूत अमेरिकी डॉलर ने रुपये पर दबाव डाला है। विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने भी इस गिरावट को बढ़ावा दिया। हालांकि, सस्ते क्रूड ने रुपये की गिरावट को कुछ हद तक थामा, लेकिन यह पेट्रोल-डीजल की कीमतों में राहत के लिए पर्याप्त नहीं रहा।
दूसरा कारण है भारत में तेल की कीमतों का निर्धारण। पेट्रोल और डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय क्रूड की कीमतों के साथ-साथ कई अन्य कारकों पर निर्भर करती हैं, जैसे उत्पाद शुल्क, वैट, और ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (OMC) का मार्जिन। सरकार और OMC ने हाल ही में नुकसान की भरपाई के लिए कीमतों को स्थिर रखने का फैसला किया है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में कहा था कि तेल कंपनियों को पिछले नुकसान की भरपाई के लिए 43,000 करोड़ रुपये की जरूरत है, जिसके लिए उत्पाद शुल्क में वृद्धि की गई। यह भी एक वजह है कि सस्ते क्रूड का फायदा आम जनता तक नहीं पहुंच रहा।
रुपये की कमजोरी और बाजार का असर
सोमवार को वैश्विक बाजारों में गिरावट और ट्रेड वॉर की आशंकाओं ने भारतीय शेयर बाजार को भी प्रभावित किया। सेंसेक्स और निफ्टी में भारी गिरावट देखी गई, जिससे विदेशी निवेशकों ने बिकवाली तेज कर दी। इससे रुपये पर अतिरिक्त दबाव पड़ा। चूंकि भारत अपनी तेल जरूरतों का 85% आयात करता है, रुपये की कमजोरी क्रूड की सस्ती कीमतों के फायदे को निगल रही है। उदाहरण के लिए, अगर क्रूड 62.90 डॉलर प्रति बैरल पर है, तो रुपये में इसकी कीमत 85.84 के विनिमय दर पर करीब 5,391 रुपये प्रति बैरल होगी। पिछले हफ्ते यह 85.23 पर 5,360 रुपये थी। यानी सस्ते क्रूड के बावजूद लागत में ज्यादा राहत नहीं मिली।
उपभोक्ताओं के लिए क्या?
फिलहाल, भारतीय उपभोक्ताओं को पेट्रोल-डीजल की कीमतों में राहत की उम्मीद कम ही नजर आती है। सरकार और तेल कंपनियां वैश्विक बाजार की अस्थिरता और रुपये के उतार-चढ़ाव को देखते हुए सतर्क रुख अपना रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर क्रूड की कीमतें लंबे समय तक निचले स्तर पर बनी रहती हैं और रुपया स्थिर होता है, तो भविष्य में कीमतों में कुछ कटौती संभव हो सकती है। लेकिन अभी के लिए, ग्लोबल मार्केट में सस्ता क्रूड भारत की जेब तक राहत नहीं पहुंचा पा रहा है।
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