Patrika Mahila Suraksha: फैसलों के साथ टिप्पणी की भी चर्चा
ऐसे मामलों को प्राथमिकता से लिस्ट करने के निर्देश चीफ
जस्टिस रमेश सिन्हा ने जारी किए हैं। कोर्ट को पता चला कि राज्य शासन को कई बार स्मरण पत्र भेजा जा चुका है, मगर बजट स्वीकृति नहीं हो रहा है। इसके बाद राज्य शासन ने लगभग 36 करोड़ रुपए का प्रावधान किया और भुगतान प्रक्रिया शुरू की।
20 साल की सजा देते हुए हाईकोर्ट की टिप्पणी
हाईकोर्ट ने पांच वर्षीय बच्ची के यौन उत्पीड़न के दोषी पाए गए व्यक्ति की 20 साल की सजा को बरकरार रखा। 22 नवंबर, 2018 की घटना में फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने पीड़िता के मन और मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव पर प्रकाश डाला और कहा कि ‘बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं है; यह अक्सर पीड़िता के पूरे व्यक्तित्व को नष्ट कर देता है। एक हत्यारा अपने शिकार के भौतिक शरीर को नष्ट करता है, पर एक बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता है।’
पीड़िता की गवाही भरोसेमंद तो दोषी ठहराने पर्याप्त
यौन उत्पीड़न के मामले में कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की है कि पीड़िता की गवाही को केवल पुष्टि के अभाव में खारिज नहीं किया जाना चाहिए। निर्णय में सर्वोच्च
न्यायालय के उदाहरणों का हवाला दिया गया, जिसमें यह स्थापित किया गया है कि यदि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय और भरोसेमंद पाई जाती है, तो वह अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त हो सकती है।
सिर्फ पागलपन के आधार पर आरोपी को पॉक्सो अधिनियम से छूट नहीं
हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष अपराधों के मामलों में पागलपन के आधार पर आरोपी को अपराध की जिम्मेदारी से छूट नहीं दी जा सकती। चीफ जस्टिस रमेश सिंह, जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने जोर देकर कहा कि अपवादों को संदेह से परे साबित करने का सिद्धांत बने रहना चाहिए।
राजनांदगांव के एक मामले में फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (पॉक्सो) द्वारा प्राकृतिक मृत्यु तक आजीवन कारावास और 20 हजार रुपये जुर्माने को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा।
बच्चों के साथ यौन अपराध मामलों से कड़ाई जरूरी
मानसिक रूप से कमजोर 16 वर्षीय लड़की के यौन उत्पीड़न को हाईकोर्ट ने अत्यधिक गंभीर मानते हुए कहा था कि दोषी बच्चों के यौन उत्पीड़न के किसी भी कृत्य को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ऐसे सभी अपराधों से सख्ती से निपटना चाहिए। रायगढ़ जिले के एक मामले में 20 साल के कठोर कारावास को उचित ठहराते हुए चीफ जस्टिस ने यह टिप्पणी की थी। एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिगों के खिलाफ अपराध मानवता के खिलाफ अपराध अपराध हैं और उनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
रिपोर्ट लिखवाने में देर से सजा में छूट नहीं
अन्य मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि एक महिला से हुए रेप के मामले में बहुत सोच विचार कर रिपोर्ट लिखाने निर्णय लिया जाता है। ऐसे में विलंब के आधार पर आरोपी को सजा में कोई छूट नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने
आरोपी की अपील को खारिज कर निचली अदालत द्वारा दी गई 20 वर्ष की सजा को यथावत रखा। मामला जशपुर जिले की 14 वर्षीय बालिका का है, जिसके गांव के ही 40 वर्षीय व्यक्ति ने डरा-धमका कर कई बार रेप किया और जान से मारने की धमकी दी।