Patrika Mahila Suraksha: नहीं हो रही सुनवाई
सरकारी संस्थानों में विशाखा कमेटी का गठन इसलिए किया जाता है ताकि कार्यस्थल पर महिलाओं को सुरक्षित माहौल मिल सके और उनकी शिकायतों की निष्पक्ष सुनवाई हो। नियमों के अनुसार, यदि किसी महिला कर्मी या छात्रा को उत्पीडऩ झेलना पड़ता है, तो विशाखा कमेटी को स्वत: संज्ञान लेकर मामले की जांच करनी चाहिए। क्योंकि यह अपने आप मेें सेंसिटिव मामला होता है। सिम्स में स्वत: संज्ञान तो दूर यहां पीड़िता द्वारा ऐसे किसी मामले की शिकायत करने के बाद भी उस पर संज्ञान नहीं लिया जाता। लिहाजा यह कहना लाजिमी होगा कि सिम्स में यह कमेटी कागजों तक सीमित रह गई है। यही वजह है कि प्रताड़ित होते रहने के बाद भी महिला स्टाफ या छात्राएं आंतरिक स्तर पर कार्रवाई न होने व बदनामी के डर से पुलिस तक को शिकायत नहीं कर पा रहीं। लिहाजा आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तों के हौसले बुलंद हैं।
सिम्स में प्रताड़ना के चर्चित केस
केस 01 पीजी की छात्रा के उत्पीड़न मामले से पहले भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जब एक जूनियर डॉक्टर ने डॉ. पंकज पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। उस समय भी न तो डीन और न ही विशाखा कमेटी ने संज्ञान नहीं लिया था। थक हार कर आखिरकार जूनियर डॉक्टर को संस्थान से रिजाइन देना पड़ा था।
केस 02
वर्ष 2019 में एक वरिष्ठ महिला प्राध्यापक की प्रताड़ना पर भी अनदेखी की गई थी। तब तत्कालीन डीन व उनके सहयोगी स्टाफ पर उंगली उठी थी। विशाखा के नकारात्मक रवैए के चलते उन्हेें इस मामले को महिला आयोग के समक्ष रखना पड़ा। इसकी जांच अभी राज्य स्तर पर चल ही रही है।
नौकरी जाने के डर से ज्यादातर शिकायत नहीं करतीं
नर्सिंग स्टाफ की कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें आए दिन यहां मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। कई बार उनके साथ पुरुष स्टाफ व डॉक्टर गलत व्यवहार करते हैं लेकिन जब वे शिकायत करने जाती हैं, तो कोई सुनवाई नहीं होती। नौकरी से हाथ धोने के डर से सब सहना पड़ रहा है। एक अन्य महिला कर्मचारी का कहना है कि वे चाहती हैं कि उनकी शिकायत प्रबंधन स्तर पर ही सुनी जाए, और न्याय मिले। क्योंकि बाहर बात जाने पर पीड़िता के साथ ही प्रबंधन की बदनामी होती है।
…जब पीजी छात्रा को लेनी पड़ी पुलिस की मदद
पीजी की छात्रा ने मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज टेंभूर्णिकर पर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की शिकायत पहले डीन से की। अनदेखी होने पर अपनी परेशानी जूनियर डॉक्टरों के समक्ष रखी। उनके दबाव में आकर डीन ने अस्थाई तौर पर आरोपी डॉक्टर को परीक्षा कार्य से अस्थाई रूप से हटा दिया। ठोस कार्रवाई न होने पर पीड़िता ने छत्तीसगढ़ डॉक्टर्स फेडरेशन से सहायता मांगी। फेडरेशन ने उनकी लिखित शिकायत सीएम व विशाखा कमेटी के समक्ष रखी। इसके बाद भी संज्ञान न लेने पर उसने सिटी कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई।
महिलाओं को सुरक्षा और न्याय की जरूरत
अगर संस्थान की आंतरिक विशाखा कमेटी सक्रिय होती, तो महिलाओं को न्याय के लिए पुलिस और कोर्ट के चक्कर नहीं काटने पड़ते। यह कमेटी उनकी समस्याओं को प्राथमिकता से सुलझाती और दोषियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करती। लेकिन फिलहाल, सिस में ऐसा होता नहीं दिख रहा। पीजी छात्रा का मामला के तूल पकड़ते ही सिस में विशाखा समिति की अध्यक्ष डॉ. संगीता जोगी को हटाकर डॉ. आरती पांडेय को जिमेदारी दी गई है।
विशाखा समिति के कार्य
महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा करना यौन उत्पीड़न के मामलों को रोकना और उनका समाधान करना यौन उत्पीड़न के बारे में जागरुकता पैदा करना लैंगिक समानता को बढ़ावा देना -कार्यस्थल पर स्वत: संज्ञान लेकर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना महिलाओं के लिए स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण बनाए रखना महिलाओं के मौलिक अधिकारों को बनाए रखना, महिलाओं के अधिकारों के प्रवर्तन के लिए कानून बनाने में मदद करना पीजी छात्रा मामले की जांच की जा रही
विशाख कमेटी की अध्यक्ष डॉ. आरती पांडेय का कहना है कि मैं कुछ दिन से छुट्टी पर थी। सोमवार को ही पता चला कि मुझे विशाखा कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया है। मैं पीजी की छात्रा मामले में जांच में जुट गई हूं।