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Bilaspur High Court: पत्नी की मौत के बाद पति का आजीवन कारावास बरकरार, हाईकोर्ट का फैसला, जानें मामला…

Bilaspur High Court: हाईकोर्ट ने धारा 302 आईपीसी के तहत राजकुमार बंजारे को दोषी ठहराए जाने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और उसे 15 हजार रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

बिलासपुरFeb 27, 2025 / 02:08 pm

Laxmi Vishwakarma

Bilaspur High Court: पत्नी की मौत के बाद पति का आजीवन कारावास बरकरार, हाईकोर्ट का फैसला, जानें मामला...
Bilaspur High Court: हाईकोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 32(1) के अन्तर्गत वैध मृत्यु पूर्व कथन की स्वीकार्यता को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने आपराधिक अपील निरस्त करते हुए अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत उसकी पत्नी ओमबाई बंजारे की हत्या के लिए दोषी ठहराया।

Bilaspur High Court: पत्नी को लगातार किया परेशान

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए इस बात पर बल दिया गया कि यदि मृत्यु पूर्व कथन स्वैच्छिक, विश्वसनीय और मानसिक रूप से स्वस्थ अवस्था में किया गया हो, तो वह दोषसिद्धि का एकमात्र आधार हो सकता है। प्रकरण के अनुसार 19 दिसंबर, 2016 को महासमुंद जिले के नवापारा अचारीडीह में राजकुमार बंजारे की पत्नी ओमबाई बंजारे गंभीर रूप से झुलस गई। अभियोजन पक्ष ने साबित किया कि अभियुक्त राजकुमार बंजारे ने अपनी पत्नी को लगातार परेशान किया और रुपए की मांग की।

अंबेडकर अस्पताल में तीसरा बयान दर्ज

इससे परेशान होकर उसने अपने शरीर पर केरोसिन डालकर आग लगा ली। 85 प्रतिशत जल चुकी पीड़िता ने शुरू में जो बयान दिए, उनका बाद में उसके परिवार ने खंडन किया। घटना के बाद पीड़िता को महासमुंद के सरकारी अस्पताल ले जाया गया। जहां पुलिस और नायब तहसीलदार ने उसके दो मृत्यु पूर्व बयान दर्ज किए। इसमें कहा गया कि स्टोव जलाते समय उसे आग लग गई।
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हालांकि, मृतक के चाचा द्वारा गवाहों को प्रभावित करने की आशंका जताए जाने के बाद, रायपुर के अतिरिक्त तहसीलदार ने डॉ. बीआर अंबेडकर अस्पताल में उसका तीसरा बयान दर्ज किया। इसमें घायल महिला ने स्पष्ट रूप से अपने पति को आग लगाने के लिए जिम्मेदार ठहराया।

कोर्ट ने दिया यह निर्णय

Bilaspur High Court: हाईकोर्ट ने धारा 302 आईपीसी के तहत राजकुमार बंजारे को दोषी ठहराए जाने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और उसे 15 हजार रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई। कोर्ट ने मृत्यु पूर्व कथनों के साक्ष्य मूल्य पर जोर देते हुए निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के कारण के बारे में या ऐसी किसी भी परिस्थिति के बारे में दिया गया कथन जिसके परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हुई।
हर उस मामले में प्रासंगिक है जिसमें उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत होता है। निर्णय में पुष्टि की गई है कि यदि पीड़ित द्वारा स्वयं लिखित शिकायत सचेत अवस्था में की गई हो और स्वतंत्र साक्ष्य द्वारा पुष्टि की हो तो मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए गए औपचारिक मृत्यु पूर्व कथन के समान ही उसका महत्व होता है।

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