राजस्थान पत्रिका ने विवि में जाकर हालात देखे, तो चिंताजनक हालात देखने को मिले। परिसर के पश्चिम भाग में फैले गंदे पानी से रासायनिक अपशिष्टों की वाष्प उठ रही थी। दुर्गंध ऐसी कि नाक ढके बिना कुछ पल भी खड़ा नहीं रहा जा सकता। इस गंदे पानी में फैले करीब 20 हेक्टेयर परिसर के पास आईएबीएम के दो लग्जरी सुविधायुक्त नए बने हॉस्टल पर ताले लगे मिले। विवि प्रबंधन से पूछने पर पता चला कि करोड़ों की लागत से हॉस्टल बने।
एसी और अटैच टॉयलेट जैसी सुविधा तक इनके कमरों में दी गई। परन्तु चंद दिन बाद ही हॉस्टल खाली कर विद्यार्थी चले गए। वजह थी गंदे पानी की दुर्गंध। इनके साथ ही मिश्रित खेती की प्रयोगशाला में भी सन्नाटा पसरा मिला। इसके बारे में पता चला कि गंदा पानी बंधा टूटने से इस लैब में घुस गया था। इसके बाद से यह भी बंद पड़ी है। कृषि विवि प्रशासन, कुलपति ने विश्वविद्यालय को बचाने के लिए इंडस्ट्री के गंदे पानी और अपशिष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए कार्यवाही का आग्रह किया है।
कृषि विश्वविद्यालय परिसर, जो भविष्य के कृषि वैज्ञानिकों के लिए रिसर्च और नवाचार की भूमि होनी चाहिए थी, आज जहरीले जल और अपशिष्ट का डंपिंग यार्ड बन गई है। हरे-भरे सैकड़ों पेड़ अब सूखी टहनियों के ठूंठ बन गए हैं। पर्यावरणीय क्षरण का असर यह है कि यहां पढ़ने वाले 2500 छात्र-छात्राएं, शिक्षक, वैज्ञानिक और उनके परिवार भी शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
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बारिश के दिनों में ज्यादा पानी आने पर इसे रोकने के लिए विवि परिसर में बने बंधे टूट जाते हैं। पिछले साल भी ऐसा ही हुआ। इससे फलों के बगीचे और नर्सरी में पानी घुस गया। कई फलदार फलों के पौधे रसायनिक अपशिष्ट युक्त पानी के कहर से नष्ट हो गए। आम, अमरूद, बेर, केला, किन्नू सहित कई फल बगीचे में लगे होने के बावजूद इनकी तरफ कोई झांक कर भी नहीं देखता।
वजह है यहां आ रही बदबू। पानी के बहाव को रोका नहीं गया, तो यह बगीचा भी उजड़ जाएगा। पास ही विवि का खेल मैदान है। विद्यार्थी बताते हैं कि इसमें भी गंदा पानी चला गया। इसके बाद से इस तरफ कोई खेलने नहीं आता।