मांगलिक गीतों के बाद निकलती है बारात लेकिन बिना दुल्हन और फेरों के लौटता है दूल्हा, जानें क्या है पूरा मामला
Holi 2025: होलाष्टक के दौरान सभी प्रकार के मांगलिक कार्यक्रम निषेध होते हैं, उस दौरान धुलंडी के दिन न केवल विष्णुरूपी दूल्हे की बारात निकलती है, बल्कि विवाह के मांगलिक गीत भी गूंजते हैं।
विमल छंगाणी उल्लास और उमंग का पर्व है होली। सतरंगी पर्व पर लोगों की मौज मस्ती और अल्हड़ता देखते ही बनती है। सामाजिक जीवन की लोक परंपराओं और संस्कृति का असर होली पर होने वाले कार्यक्रमों पर भी दिखता है। ऐसा ही एक नजारा दिखता है बीकानेर में धुलंडी के दिन।
जब होलाष्टक के दौरान सभी प्रकार के मांगलिक कार्यक्रम निषेध होते हैं, उस दौरान धुलंडी के दिन न केवल विष्णुरूपी दूल्हे की बारात निकलती है, बल्कि विवाह के मांगलिक गीत भी गूंजते हैं। महिलाएं दूल्हे को पोखने की रस्म निभाती हैं और बारातियों की मान-मनुहार भी होती है। बीकानेर में यह अनूठी परंपरा रियासतकाल से चल रही है, जिसमें हर्ष जाति के दूल्हे की बारात हर साल धुलंडी के दिन निकलती है। इस बार यह बारात 14 मार्च को निकलेगी।
दूल्हा सिर पर खिड़किया पाग, ललाट पर पेवड़ी व कुमकुम अक्षत तिलक, बनियान व पीताम्बर पहने हुए व गले में पुष्पहार धारण करके पैदल ही बारात में शामिल होता है। इस बारात में युवक के घर-परिवार, समाज, मोहल्ला व हर्ष जाति के लोग शामिल होते हैं। ‘तू मत डरपे हो लाडला’ के स्वरों के बीच दूल्हे की बारात शंख ध्वनि और झालर की झंकार के बीच निकलती है। दूल्हा विष्णुरूप में सज धज कर बारात में शामिल होता है।
दूल्हे को पोखने की रस्म
ओंकारनाथ हर्ष के अनुसार, मोहता चौक से रवाना होकर यह बारात शहर के विभिन्न चौक व मोहल्लों में निर्धारित मकानों के आगे पहुंचती है। जिस मकान के आगे दूल्हा पहुंचता है, उस परिवार की महिलाएं दूल्हे को पोखने की रस्म निभाती हैं। मांगलिक गीत गाती हैं। बारातियों का स्वागत होता है। एक मकान से दूसरे मकान तक दूल्हा पहुंचता है। इसमें न विवाह होता है और न ही फेरे। दुल्हा निर्धारित मकानों पर पोखने की रस्म निभाने के बाद पुन: मोहता चौक लौट आता है। इस दौरान दूल्हा बारातियों के साथ लगभग 13 मकानों पर पहुंचता है। जहां घर-परिवार की महिलाएं इस दूल्हे को पोखरे की रस्म निभाती हैं।
तीन शताब्दी पुरानी परंपरा
धुलंडी के दिन निकलने वाली बारात विभिन्न जातियों में आपसी प्रेम, सद् भाव और एकता का प्रतीक है। एडवोकेट हीरालाल हर्ष के अनुसार, करीब तीन शताब्दी से इस परंपरा का निर्वहन हो रहा है। बारात जिन मार्गों से होकर निकलती है, वहां का माहौल धुलंडी के दिन भी विवाह मय हो जाता है। मांगलिक गीत गूंजते हैं। हर्ष जाति का कुंवारा युवक ही इस परंपरा में दूल्हा बनता है। बारात में शामिल दूल्हा दस से अधिक निर्धारित मकानों पर पहुंचता है।