दोनों 38 साल तक कानून लड़ाई लड़ते रहे, पति 65 के और पत्नी 62 साल की हो गई। लंबी कानूनी लड़ाई से दोनों अलग नहीं हो सके। आखिरकार आपसी सहमति से ही अलग हुए। इसके बदले पति ने 12 लाख रुपए भरण पोषण दिया।
हर केस की स्थिति ऐसी ही
आपसी समझौते से खत्म होने वाला यह इकलौता केस नहीं है। तकरीबन हर केस की स्थिति ऐसी ही है। यदि एक पक्ष कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है वह अपील में पहुंच रहा है। बरसों एक दूसरे के खिलाफ लड़ने के बाद सुलह से ही अलग रहे हैं। कानून लड़ाई लड़ते-लड़ते दोनों के रिश्ते में दरारें इतनी अधिक बढ़ रही है कि उन्हें न्यायालय भी नहीं भर पा रहा है। यहां तक न्यायालय और काउंसलर यदि उन्हें आपसी समझौते से अलग करने को राजी भी कर लेते हैं तो भी मामला अटक जाता है।
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● 2025 में कुटुंब न्यायालय में 381 नए केस आए। 234 तलाक, 147 भरण पोषण, घरेलू हिंसा से जुड़े हैं।
● कुटुंब न्यायालय व हाईकोर्ट में काउंसलर रखे। वे भी पति-पत्नी के विवाद खत्म नहीं करा पा रहे। दोनों साथ रहने या सहमति से अलग होने को तैयार नहीं होते। ● सहमति से तलाक में भरण पोषण की राशि पर बात अटकती है, पत्नी यह राशि लेने को तैयार नहीं होती।
● हाईकोर्ट आने वालों में एक पास तलाक की डिक्री, दूसरे के पास कुछ नहीं होता। ऐसे में सुलह मुश्किल होती है। दोनों अलग-अलग दिशाओं में भागते हैं। उन्हें समझाते हैं, लड़ते रहेंगे तो बूढ़े हो जाएंगे, तलाक नहीं मिलेगा। दूसरी शादी भी नहीं कर सकते। विचार न मिले तो अलग रहें। दोनों आसानी से नहीं मानते हैं।- एचके शुक्ला, काउंसलर हाईकोर्ट