पंडितों का कहना है कि भद्रा समाप्ति के बाद ही होलिका दहन करना श्रेष्ठ होता है, विशेष परिस्थितियों में प्रदोष काल में भी होलिका दहन किया जा सकता है। इस बार ग्रह, नक्षत्रों की युति से इस बार कई शुभ योग बनेंगे। इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, धृति और शश योग का भी संयोग रहेगा।
होलाष्टक का दोष मान्य नहीं
होली के आठ दिन पहले का समय होलाष्टक कहलाता है। इस दौरान कुछ राज्यों में होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं, लेकिन मध्यभारत में होलाष्टक का दोष नहीं लगता है। पं. गंगाप्रसाद आचार्य ने बताया कि मध्यभारत में होलाष्टक का दोष मान्य नहीं है। यह दोष सतलज, रावी, व्यास, सिंधु और झेलम इन पांच नदियों के किनारे बसे राज्यों में लगता है। जिसमें पंजाबी, जम्म कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान का कुछ हिस्सा आता है। शेष स्थानों पर इसका दोष मान्य नहीं है। शास्त्रों में भी होलाष्टक का दोष मान्य नहीं किया गया है। दूसरी ओर ज्योतिष मठ संस्थान के पं. विनोद गौतम का कहना है कि इस बार होलिका दहन के दिन 13 मार्च को सूर्य और शनि कुंभ राशि में एक साथ रहेंगे। इस दिन शनि अपनी स्वराशि कुंभ में रहेगा। यह संयोग देश दुनिया के लिए विशेष शुभ होगा।
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भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन शुभ
सुबह से रात्रि तक भद्रा आमतौर पर होलिका दहन के दिन भद्रा की स्थिति रहती है, इस बार भी भद्रा की स्थिति रहेगी। ब्रह्मशक्ति ज्योतिष संस्थान के पं. जगदीश शर्मा ने बताया कि भद्रा सुबह 10.35 मिनट से प्रारंभ होगी, इस बार भद्रा का वास धरती पर रहेगा, इसलिए भद्रा समाप्ति के बाद ही होलिका दहन करना शुभ रहेगा।
भद्रा रात्रि 11:26 मिनट तक रहेगी, तब ही होली जलेगी। इसके साथ ही इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, धृति योग और शश योग का भी संयोग बन रहा है, जो विशेष तौर से शुभ माना गया है। इसलिए इस दिन का विशेष महत्व हैा